________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी] [ 423 तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति और सार्थवाह प्रभति को दोनों हाथ जोड़कर, दसों नख मिला कर मस्तक पर आवर्तन करके, अंजलि करके और 'जय-विजय' शब्द कह कर बधाना-उनका अभिनन्दन करना / अभिनन्दन करके इस प्रकार कहना-- ८७---'एवं खलु देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए चुलणीए देवीए अत्तयाए धट्ठजुष्ण-कुमारस्स भगिणीए दोवईए रायवर-कण्णाए सयंवरे भविस्सइ, तं गं तुन्भे देवाणुप्पिया ! दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहोणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह / ' 'हे देवानुप्रियो ! काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की प्रात्मजा और राजकुमार धृष्टद्युम्न की भगिनी श्रेष्ठ राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला है। अतएव हे देवानुप्रियो ! आप सब द्रुपद राजा पर अनुग्रह करते हुए, विलम्ब किये बिना-उचित समय परकांपिल्यपुर नगर में पधारना / ' ८८-तए णं से दूए करयल जाव कटु दुवयस्स रण्णो एयमझें विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी --'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवटुवेह / ' जाव ते वि तहेव उवट्ठति। तत्पश्चात् दूत ने दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके द्रुपद राजा का यह अर्थ (कथन) विनय के साथ स्वीकार किया। स्वीकार करके अपने घर आकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया / बुला कर इस प्रकार कहा- 'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घंटाओं वाला अश्वरथ जोत कर उपस्थित करो।' कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् रथ उपस्थित किया / ___८९--तए णं से दूए हाए जाव अलंकारविभूसियसरीरे चाउरघंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहिता बहूहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध जाव] बद्ध-वम्मिय-कवहिं उप्पीलियसरासण-पट्टिएहि पिणद्धगेविज्जेिहि आविद्ध-विमल-वरचिधपहि] गहियाऽऽउह-पहरणेहिं सद्धि संपरिवुडे कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमज्झेणं निम्गच्छइ, निग्गच्छित्ता पंचालजणवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता सुरद्वाजणवयस्स मज्झमशेणं जेणेव वारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वारवई नरि मज्झमज्झेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्टाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासूदेवे तेणेब उवागच्छड उवागच्छित्ता कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामुक्खे य दस दसारे जाव बलवगसाहस्स हविजयपामुक्खे य दस दसारे जाव बलवगसाहस्सीओ करयल तं चेव जाव समोसरह / तत्पश्चात् स्नान किये हुए और अलंकारों से विभूषित शरीर वाले उस दूत ने चार घंटाओं वाले अश्व रथ पर आरोहण किया। प्रारोहण करके [अंगरक्षा के लिए कवच धारण करके, धनुष लेकर अथवा भुजाओं पर चर्म की पट्टी बांधकर, ग्रीवारक्षक धारण करके मस्तक पर गाढ़ा बंधा चिह्नपट्ट धारण करके] तैयार हुए अस्त्र-शस्त्रधारी बहुत-से पुरुषों के साथ कांपिल्यपुर नगर के १-अ. 16 सूत्र 87. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org