________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी] [ 421 नाम नगरे होत्था। वन्नओ। तत्थ णं दुवए नाम राया होत्था, वन्नओ। तस्स णं चुलणी देवी, धटुजण्णे कुमारे जवराया। उस काल में और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भरतक्षेत्र में पांचाल देश में काम्पिल्यपुर नामक नगर था। उसका वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार कहना चाहिए। वहाँ द्रुपद राजा था। उसका वर्णन भी औपपातिकसूत्रानुसार कहना चाहिए / द्रुपद राजा की चुलनी नामक पटरानी थी और धृष्टद्युम्न नामक कुमार युवराज था / द्रौपदी का जन्म ___८१-तए णं सा सूमालिया देवी ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव [ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं] चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएसु कंपिल्लपुरे नयरे दुपयस्स रण्णो चुलणीए देवीए कुच्छिसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा चुलणी देवी नवण्हं मासाणं जाव दारियं पयाया। सुकुमालिका देवी उस देवलोक से, आयु भव और स्थिति को समाप्त करके यावत् देवीशरीर का त्याग करके इसी जम्बूद्वीप में, भारत वर्ष में, पंचाल जनपद में, काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की चुलनी रानी की कख में लड़की के रूप में उत्पन्न हुई। तत्पश्चात् चलनी देवी ने नौ मास पूर्ण होने पर यावत् पुत्री को जन्म दिया। नामकरण ___८२-तए णं तीसे दारियाए निव्वत्तवारसाहियाए इमं एयारूवं नामधेज्ज-जम्हा णं एसा दारिया दुवयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधिज्जे दोवई / तए णं तीसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गुण्णं गुणनिष्फन्नं नामधेज्ज करिति--'दोबई'। तत्पश्चात् बारह दिन व्यतीत हो जाने पर उस बालिका का ऐसा नाम रक्खा गया--'क्योंकि यह बालिका द्रुपद राजा की पुत्री है और चुलनी रानी की आत्मजा है, अतः हमारी इस बालिका का नाम 'द्रौपदी' हो / तब उसके माता-पिता ने इस प्रकार कह कर उसका गुण वाला एवं गुणनिष्पन्न नाम 'द्रौपदी' रक्खा। ८३-तए णं सा दोवई दारिया पंचधाइपरिग्गहिया जाव गिरिकंदरमल्लीण इव चंपगलया निवायनिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्ढइ / तए णं सा दोवई रायवरकन्ना उम्मुक्कबालभावा जाव' उक्किटुसरीरा जाया यावि होत्था / तत्पश्चात् पाँच धायों द्वारा ग्रहण की हुई वह द्रौपदी दारिका पर्वत की गुफा में स्थित वायु आदि के व्याघात से रहित चम्पकलता के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगी। वह श्रेष्ठ राजकन्या बाल्यावस्था से मुक्त होकर यावत् क्रमशः यौवनावस्था को प्राप्त हुई, समझदार हो गई, उत्कृष्ट रूप, यौवन एवं लावण्य से सम्पन्न तथा उत्कृष्ट शरीर वाली भी हो गई। 1. अ. 16. सूत्र 36. -. . . . . . ... - --- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org