________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी ] [ 419 भव में इसी प्रकार के मनुष्य संबंधी कामभोगों को भोगती हुई विचरूं। उसने इस प्रकार निदान किया / निदान करके आतापनाभूमि से वापिस लौटी / सुकुमालिका की बकुशता ७५-तए णं सा सूमालिया अज्जा सरीरबउसा जाया यावि होत्था, अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराई धोवेइ, कक्खंतराइं धोवेइ, गोज्झंतराई धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ वि य णं पुवामेव उदएणं अब्भुक्खइत्ता तओ पच्छा ठाणं सेज्जं वा चेएइ। ___ तत्पश्चात् वह सुकुमालिका आर्या शरीरबकुश हो गई, अर्थात् शरीर को साफ-सुथरा-सुशोभन रखने में आसक्त हो गई / वह बार-बार हाथ धोती, पैर धोती, मस्तक धोती, मुंह धोती, स्तनान्तर (छाती) धोती, बगलें धोती तथा गुप्त अंग धोती। जिस स्थान पर खड़ी होती या कायोत्सर्ग करती, सोती, स्वाध्याय करतो, वहां भी पहले ही जमीन पर जल छिड़कती थी और फिर खड़ी होती, कायोत्सर्ग करती, सोती या स्वाध्याय करती थी। ७६-तए णं ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं एवं बयासी-'एवं खलु पए! अज्जे! अम् समणीओ निगंथाओ ईरियासमियाओ जाव बंभचेरधारिणीओ, नो खलु कप्पइ अम्हं सरीरबाउसियाए होत्तए, तुमं च णं अज्जे ! सरीरबाउसिया अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवसि जाव चेएसि, तं तुमं णं देवाणुप्पिए ! तस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवज्जाहि / ' तब उन गोपालिका प्रार्या ने सूकुमालिका आर्या से इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिये ! हम निर्ग्रन्थ साध्वियाँ हैं, ईर्यासमिति से सम्पन्न यावत् ब्रह्मचारिणी हैं। हमें शरीरबकुश होना नहीं कल्पता, किन्तु हे प्रायें ! तुम शरीरबकुश हो गई हो, बार-बार हाथ धोती हो, यावत् फिर स्वाध्याय आदि करती हो / अतएव देवानुप्रिये ! तुम बकुशचारित्र रूप स्थान की आलोचना करो यावत् प्रायश्चित्त अंगीकार करो।' ७७-तए णं सूमालिया गोवालियाणं अज्जाणं एयमझें नो आढाइ, नो परिजाणइ, अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी विहरइ / तए णं ताओ अज्जाओ सूमालियं अज्ज अभिक्खणं अभिक्खणं अभिहीलंति जाव [निर्देति खिसेति गरिहंति] परिभवंति, अभिक्खणं अभिक्खणं एयमढं निवारेति / तब सुकुमालिका आर्या ने गोपालिका प्रार्या के इस अर्थ (कथन) का आदर नहीं किया, उसे अंगीकार नहीं किया / वरन् अनादर करती हुई और अस्वीकार करती हुई उसी प्रकार रहने लगी। तत्पश्चात् दूसरी पार्याएँ सुकुमालिका आर्या की बार-बार अवहेलना करने लगी, यावत् [निन्दा करने लगीं, खीजने लगीं, गर्दी करने लगीं] अनादर करने लगी और बार-बार इस अनाचार के लिए उसे रोकने लगी। सुकुमालिका का पृथक् बिहार ७८-तए णं तीसे सूमालियाए समणीहि निग्गंथीहि होलिज्जमाणीए जाव वारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपज्जित्था-'जया णं अहं अगारवासमझे वसामि, तया णं अहं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org