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________________ 418] [ ज्ञाताधर्मकथा तब सुकुमालिका को गोपालिका आर्या की इस बात पर श्रद्धा नहीं हुई, प्रतीति नहीं हुई, रुचि नहीं हई। वह सुभमिभाग उद्यान से कुछ समीप में निरन्तर बेले-बेले का तप करती हई यावत आतापना लेती हुई विचरने लगी। सुकुमालिका का निदान ___७२-तत्थ णं चंपाए नयरीए ललिया नाम गोट्ठी परिवसइ नरवइदिण्णवि (प) यारा, अम्मापिइनिययनिप्पिवासा, वेसविहारकनिकेया, नाणाविहअविणयप्पहाणा अट्टा जाव अपरिभूया। चम्पा नगरी में ललिता (क्रीडा में संलग्न रहने वाली) एक गोष्ठी (टोली) निवास करती थी। राजा ने उसे इच्छानुसार विचरण करने की छूट दे रक्खी थी। वह टोली माता-पिता आदि स्वजनों की परवाह नहीं करती थी / वेश्या का घर ही उसका घर था। वह नाना प्रकार का अविनय (अनाचार) करने में उद्धत थी, वह धनाढय लोगों की टोली थी और यावत् किसी से दबती नहीं थी अर्थात् कोई उसका पराभव नहीं कर सकता था। ७३-तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया होत्था सुकुमाला जहा अंड-णाए। तए णं तीसे ललियाए गोट्ठीए अन्नया पंच गोटिल्लपुरिसा देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुभवमाणा विहरति / तत्थ गं एगे गोदिल्लपुरिसे देवदत्तं गणियं उच्छंगे धरइ, एगे पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, एगे पुष्फपूरयं रएइ, एगे पाए रएइ, एगे चामरुक्खेवं करेइ। उस चम्पा नगरी में देवदत्ता नाम की गणिका रहती थी। वह सुकुमाल थी / (तीसरे) अंडक अध्ययन के अनुसार उसका वर्णन समझ लेना चाहिए। एक बार उस ललिता गोष्ठी के पाँच गोष्ठिक पुरुष देवदत्ता गणिका के साथ, सुभूमिभाग उद्यान की लक्ष्मी (शोभा) का अनुभव कर रहे थे। उनमें से एक गोष्ठिक पुरुष ने देवदत्ता गणिका को अपनी गोद में बिठलाया, एक ने पीछे से छत्र धारण किया, एक ने उसके मस्तक पर पुष्पों का शेखर रचा, एक उसके पैर (महावर से) रंगने लगा, और एक उस पर चामर ढोरने लगा। ७४-तए णं सा सूमालिया अज्जा देवदत्तं गणियं पंचहि गोदिल्लपुरिसेहिं सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणि पासइ, पासित्ता इमेयारूवे संकप्पे समुष्पज्जित्था—'अहो णं इमा इत्थिया पुरापोराणाणं जाव [सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं कडाण कल्लाणाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुब्भवमाणी] विहरइ, तं जइ णं केइ इमस्स सुचरियस्स तवनियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि, तो णं अहमवि आगमिस्सेणं भवग्गहणेणं इमेयारूवाइं उरालाई जाव [माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणी] विहरिज्जामि' त्ति कटु नियाणं करेइ, करित्ता आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ। उस सुकुमालिका आर्या ने देवदत्ता गणिका को पाँच गोष्ठिक पुरुषों के साथ उच्चकोटि के मनुष्य संबंधी कामभोग भोगते देखा / देखकर उसे इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न हुआ—'अहा ! यह स्त्री पूर्व में प्राचरण किये हुए शुभ कर्मों का फल अनुभव कर रही है / सो यदि अच्छी तरह से आचरण किये गये इस तप, नियम और ब्रह्मचर्य का कुछ भी कल्याणकारी फल-विशेष हो, तो मैं भी आगामी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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