________________ [ ज्ञाताधर्मकथा तत्पश्चात् सागरदत्त ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया / बुलाकर उनसे कहा--'देवानुप्रियो! तुम जानो और उस द्रमक पुरुष (भिखारी) को विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का लोभ दो। लोभ देकर घर के भीतर लामो / भीतर लाकर सिकोरे और घड़े के टुकड़े को एक तरफ फैक दो / फैक कर आलंकारिक कर्म (हजामत आदि विभूषा) करायो / फिर स्नान करवाकर, बलिकर्म करवा कर, यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित करो। फिर मनोज्ञ अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन जिमायो / भोजन जिमाकर मेरे निकट ले आना।' * ६१-तए णं कोडुबियपुरिसा जाव पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जेणेव से दमगपुरिसे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं दमग असणं पाणं खाइमं साइमं उवप्पलोभेति, उपप्पलोभित्ता सयं गिहं अणुप्पवेसेंति, अणुप्पवेसित्ता तं खंडमल्लग खंडघडगं च तस्स दमगपुरिसस्स एगते एडेति / तए णं से दमगे तं खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एगते एडिज्जमाणंसि महया महया सद्देणं आरसइ। तब उन कौटम्बिक पुरुषों ने सागरदत्त की आज्ञा अंगीकार की। अंगीकार करके वे उस भिखारी पुरुष के पास गये / जाकर उस भिखारी को अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन का प्रलोभन दिया। प्रलोभन देकर उसे अपने घर में ले पाए / लाकर उसके सिकोरे के टुकड़े को तथा घड़े के ठीकरे को एक तरफ डाल दिया। सिकोरे का टुकड़ा और धड़े का टुकड़ा एक जगह डाल देने पर वह भिखारी जोर-जोर से आवाज करके रोने-चिल्लाने लगा। (क्योंकि वही उसका सर्वस्व था / ) ६२-तए णं से सागरदत्ते तस्स दमगपुरिसस्स तं महया महया आरसियसई सोच्चा निसम्म कोडुबियपुरिसे एवं बयासी-'कि णं देवाणुप्पिया! एस दमगपुरिसे महया महया सद्देणं आरसइ ?' तए णं ते कोडुबियपुरिसा एवं वयासी.--'एस गं सामी ! तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एगते एडिज्जमाणंसि महया महया सद्देणं आरसइ / ' तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ते कोडुबियपुरिसे एवं क्यासी-'मा णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! एयस्स दमगस्त तं खंडं जाव एडेह, पासे ठवेह, जहा णं पत्तियं भवइ / ' ते वि तहेव ठविति। तत्पश्चात् सागरदत्त ने उस भिखारी पुरुष के ऊँचे स्वर से चिल्लाने का शब्द सुनकर और समझकर कौटुम्बिक पुरुषों को कहा-'देवानुप्रियो ! यह भिखारी पुरुष क्यों जोर-जोर से चिल्ला रहा है ?' तब कौटुम्बिक पुरुषों ने कहा- 'स्वामिन् ! उस सिकोरे के टुकड़े और घट के ठीकरे को एक ओर डाल देने के कारण वह जोर-जोर से चिल्ला रहा है।' तब सागरदत्त सार्थवाह ने उन कौटुम्बिक पुरुषों से कहा---'देवानुप्रियो ! तुम उस भिखारी के उस सिकोरे और घड़े के खंड को एक अोर मत डालो, उसके पास रख दो, जिससे उसे प्रतीति हो-विश्वास रहे / ' यह सुनकर उन्होंने वे टुकड़े उसके पास रख दिए। ६३-तए णं ते कोडुबियपुरिसा तस्स दमगस्स अलंकारियकम्मं करेंति, करिता सयपागसहस्सपागेहि तेल्लेहि अभंगेति, अभंगिए समाणे सुरभिगंधुबट्टणेणं गायं उट्टिति उव्यट्टित्ता उसिणोदगगंधोदएणं ण्हाणेति, सीतोदगेणं हाणेति, हाणित्ता पम्हलसुकुमालगंधकासाईए गायाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org