________________ सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी ] [ 409 जहानामए–असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा, इत्तो अणिद्वतराए चेव पाणिफास पडिसंवेदेइ / तए णं से सागरए अकामए अवसव्वसे तं मुहुत्तमित्तं संचिट्ठइ / उस समय सागर पुत्र को सुकुमालिका पुत्री के हाथ का स्पर्श ऐसा प्रतीत हुअा मानो कोई तलवार हो अथवा यावत् मुर्मुर आग हो / इतना ही नहीं बल्कि इससे भी अधिक अनिष्ट हस्त-स्पर्श का वह अनुभव करने लगा। किन्तु उस समय वह सागर बिना इच्छा के विवश होकर उस हस्तस्पर्श का अनुभव करता हुया मुहूर्त्तमात्र (थोड़ी देर) बैठा रहा / विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में संक्षिप्त पाठ ही दिया गया है। अन्यत्र विस्तृत पाठ है, जो इस प्रकार है (असिपत्ते इ वा) करपत्ते इ वा खुरपत्ते इ वा कलंबचीरियापत्त इ वा सत्तिअग्गे इ वा कोंतग्गे इ वा तोमरग्गे इ वा भिडिमालग्गे इ वा सूचिकलावए इ वा विच्छुयडंके इ वा कविकच्छू इ वा इंगाले इ वा मुम्मुरे इ वा अच्ची इ वा जाले इ वा अलाए इ वा सुद्धागणी इ वा, भवे एयारूवे ? नो इणठे समठे / एत्तो अणि?तराए चेव अकंततराए चेव अधियतराए चेव अमणुण्णतराए चेव अमणामतराए चेव / —टीका-(अभयदेवसूरि) ___-अंगसुत्ताणि तृ. भाग संक्षिप्त पाठ और विस्तृत पाठ के तात्पर्य में कोई अन्तर नहीं है। दोनों पाठों में सुकुमालिका के हाथ की दो विशेषताएं प्रदर्शित की गई हैं- तीक्ष्णता और उष्णता / संक्षिप्त पाठ में इन दोनों विशेषताओं को प्रदर्शित करने के लिए 'असिपत्ते इ वा' और 'मुम्मुरे इ वा' पदों का प्रयोग किया गया है, जब कि इन्हीं दोनों विशेषताओं को दिखाने के लिए विस्तृत पाठ में अनेक-अनेक उदाहरणों का प्रयोग हुआ है। किन्तु संक्षिप्त पाठ में 'जाव मुम्मुरे इ वा' है, जबकि विस्तृत पाठ में अन्त में 'सुद्धागणी इ वा' पाठ है / जान पड़ता है कि दोनों पाठों में से किसी एक में पद आगे-पीछे हो गए हैं / या तो संक्षिप्त पाठ में 'जाव सुद्धागणी इवा' होना चाहिए अथवा विस्तृत पाठ में 'मुम्मुरे इवा' शब्द अन्त में होना चाहिए / टीका बाली प्रति में भी यहाँ गृहीत संक्षिप्त पाठ के अनुसार ही पाठ है। इस व्यतिक्रम को लक्ष्य में रखकर यहां विस्तृत पाठ कोष्ठक में न देकर विवेचन में दिया गया है / विस्तृत पाठ के शब्दों का भावार्थ इस प्रकार है-- सुकुमालिका के हाथ का स्पर्श ऐसा था कि (मानो तलवार हो), करोंत हो, छुरा हो, कदम्बचीरिका हो, शक्ति नामक शस्त्र का अग्रभाग हो, भिडिमाल शस्त्र का अग्रभाग हो, सुइयों का समूह हो–अनेक सुइयों की नोके हों, बिच्छू का डंक हो, कपिकच्छू–एक दम खुजली उत्पन्न करने वाली वनस्पति- करेंच हो, अंगार (ज्वालारहित अग्निकण) हो, मुमुर (अग्निमिश्रित भस्म) हो, अचि (ईंधन से लगी अग्नि) हो, ज्वाला (ईंधन से पृथक् ज्वाला-लपट) हो, अलात (जलती लकड़ी) हो या शुद्धाग्नि (लोहे के पिण्ड के अन्तर्गत अग्नि) हो। क्या मुकमालिका के हाथ का स्पर्श वास्तव में ऐसा था ? नहीं, इनसे भी अधिक अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमनाम था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org