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________________ 408 ] [ ज्ञाताधर्मकथा तए णं से सागरए दारए जिणदत्तेणं सत्यवाहेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिटुइ / तत्पश्चात् जिनदत्त सार्थवाह, सागरदत्त सार्थवाह के इस प्रकार कहने पर अपने घर गया / घर जाकर सागर नामक अपने पुत्र को बुलाया और उससे कहा-'हे पुत्र ! सागरदत्त सार्थवाह ने मुझसे ऐसा कहा है-'हे देवानुप्रिय ! सुकुमालिका लड़की मेरी प्रिय है, इत्यादि पूर्वोक्त यहाँ दोहरा लेना चाहिए / सो यदि सागर मेरा गृहजामाता बन जाय तो मैं अपनी लड़की हूँ। जिनदत्त सार्थवाह के ऐसा कहने पर सागर पुत्र मौन रहा / (मौन रह कर अपनी स्वीकृति प्रकट को) / ४४-तए णं जिणदत्ते सत्थवाहे अन्नया कयाई सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता मित्तनाइनियग-सयण-संबंधिपरियणं आमतेइ, जाव संमाणित्ता सागरं दारयं व्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करित्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहावेइ, दुरूहावित्ता मित्तणाइ जाव संपरिवुडे सविड्ढीए साओ गिहाओ निग्गच्छा, निग्गच्छित्ता चंपानार मज्झमज्झेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरहइ, पच्चो हित्ता सागरगं दारगं सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स उवणेइ। / तत्पश्चात् एक बार किसी समय शुभ तिथि, करण नक्षत्र और मुहूर्त में जिनदत्त सार्थवाह ने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करवाया। तैयार करवाकर मित्रों, निज जनों, स्वजनों, संबंधियों तथा परिजनों को आमंत्रित किया, यावत् जिमाने के पश्चात् सम्मानित किया / फिर सागर पुत्र को नहला-धुला कर यावत् सब अलंकारों से विभूषित किया। पुरुषसहस्रवाहिनी पालकी पर आरूढ किया, आरूढ करके मित्रों एवं ज्ञातिजनों आदि से परिवृत होकर यावत् पूरे ठाठ के साथ अपने घर से निकला / निकल कर चम्पानगरी के मध्य भाग में होकर जहाँ सागरदत्त का घर था, वहाँ पहुँचा / वहाँ पहुँच कर सागर पुत्र को पालकी से नीचे उतारा / फिर उसे सागरदत्त सार्थवाह के समीप ले गया। सुकुमालिका का विवाह ४५–तए णं सागरदत्ते सत्यवाहे विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता जाव संमाणेत्ता सागरगं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धि पट्टयं दुरूहावेइ, दुरूहावित्ता सेयापीयएहिं कलसेहि मज्जावेइ, मज्जावित्ता होमं करावेइ, करावित्ता सागरं दारयं सूमालियाए दारियाए पाणि गेण्हावेइ। तत्पश्चात् सागरदत्त सार्थवाह ने विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन तैयार करवाया / तैयार करवा कर यावत् उनका सन्मान करके सागर पुत्र को सुकुमालिका पुत्री के साथ पाट पर बिठलाया। बिठला कर श्वेत और पीत अर्थात् चांदी और सोने के कलशों से स्नान करवाया / स्नान करवा कर होम करवाया / होम के बाद सागर पुत्र को सुकुमालिका पुत्री का पाणिग्रहण करवाया / (विवाह की विधि सम्पन्न करवाई)। 46 -तए णं सागरदारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं पाणिफास पडिसंवेदेइ से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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