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________________ सोलहवाँ अध्ययन : द्रोपदी] [ 399 गये / पूर्व दिशा की ओर मुख करके पर्यक आसन से बैठ कर, दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक पर आवर्तन करके, अंजलि करके इस प्रकार कहा १८-नमोऽत्थु णं अरहंताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्थु णं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं. धम्मोवएसगाणं, पुदिव पि णं मए धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव परिग्गहे,' इयाणि पि णं अहं तेसिं चेव भगवंताणं अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव परिग्गहं पच्चक्खामि जावजीवाए, जहा खंदओ जाव चरिमेहिं उस्सासेहि बोसिरामि त्ति कटु आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालगए। . अरिहंतों यावत् सिद्धिगति को प्राप्त भगवन्तों को नमस्कार हो। मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक धर्मघोष स्थविर को नमस्कार हो / पहले भी मैंने धर्मघोष स्थविर के पास सम्पूर्ण प्राणातिपात का जीवन पर्यन्त के लिये प्रत्याख्यान किया था, यावत् परिग्रह का भी, इस समय भो मैं उन्हीं भगवंतों के समीप (उनकी साक्षी से) सम्पूर्ण प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हूँ यावत् सम्पूर्ण परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ जीवन-पर्यन्त के लिए / जैसे स्कंदक मुनि ने त्याग किया, उसी प्रकार यहाँ जानना चाहिए / यावत् अन्तिम श्वासोच्छ्वास के साथ अपने इस शरीर का भी परित्याग करता हूँ। इस प्रकार कह कर अालोचना और प्रतिक्रमण करके, समाधि के साथ मृत्यु को प्राप्त हुए। १९-तए णं ते धम्मघोसा थेरा धम्मरुइं अणगारं चिरं गयं जाणित्ता समणे निग्गंथे सदाति सहावित्ता एवं वयासी-'एवं खलु देवाणुप्पिया! धम्मरुइस्स अणगारस्स मासखमणपारणगंसि सालाइयस्स जाव गाढस्स णिसिरणट्ठयाए बहिया निग्गए चिरावेइ, तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेह।' तत्पश्चात् धर्मघोष स्थविर ने धर्मरुचि अनगार को चिरकाल से गया जानकर निर्ग्रन्थ श्रमणों को बुलाया / बुलाकर उनसे कहा—'देवानुप्रियो ! धर्मरुचि अनगार को मासखमण के पारणक में शरद् संबंधी यावत् तेल वाला कटुक तुबे का शाक मिला था। उसे परठने के लिए वह बाहर गये थे / बहुत समय हो चुका है / अतएव देवानुप्रिय ! तुम जाओ और धर्मरुचि अनगार की सब ओर मार्गणा---गवेषणा (तलाश) करो।' २०–तए णं ते समणा निग्गंथा जाव पडिसुणेति, पडिसुणित्ता धम्मघोसाणं थेराणं अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेमाणा जेणेव गेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सरीरगं निष्पाणं निच्चेटठं जीवविप्पजदं पासंति, पासित्ता हा हा! अहो अकज्ज' मिति कटट धम्मरुडस्स अणगारस्स परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स आयारभंडगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता गमणागमणं पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एवं वयासी 1. धर्मरुचि अनमार को मध्यवर्ती तीर्थकर-शासन में हए मानकर 'अंगसुत्ताणि' में बहिखादाणे पाठ का सुझाव दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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