________________ सोलसमं अज्झयण : अवरकंका (दोवई) जम्बूस्वामी का प्रश्न १-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं पन्नरसमस्स नायज्मयणस्स अयमठे पण्णत्ते, सोलसमस्स णं भंते ! णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? श्री जम्बूस्वामी ने श्री सुधर्मास्वामी से प्रश्न किया-'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने पन्द्रहवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो सोलहवें ज्ञात-अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?' सुधर्मास्वामी का उत्तर २–एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं गयरी होत्या। तीसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तर पुरच्छिमे दिसीभाए सुभूमिभागे णामं उज्जाणे होत्था। श्री सूधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा-'जम्बू ! उस काल और उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। उस चम्पा नगरी से बाहर उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा के भाग में सुभूमिभाग नामक उद्यान था / ३-तत्थ णं चंपाए नयरीए तओ माहणा भायरो परिवसंति, तंजहा-सोमे, सोमदत्ते, सोमभूई, अड्ढा जाब [अपरिभूया] रिउव्वेय [जउव्वेय-सामवेय-अथव्वणबेय जाव बंभण्णएसु य सत्थेसु] सुपरिनिट्ठिया / तेसि गं माहणाणं तओ भारियाओ होत्था, तंजहा-नागसिरी, भूयसिरी, जक्खसिरी, सुकुमालपाणिपायाओ जाव तेसि णं माहणाणं इट्ठाओ, विपुले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणीओ विहरंति / उस चम्पा नगरी में तीन ब्राह्मण-बन्धु निवास करते थे। उनके नाम इस प्रकार थे-सोम, सोमदत्त और सोमभूति / वे धनाढ्य थे यावत् ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा अन्य ब्राह्मणशास्त्रों में यावत अत्यन्त प्रवीण थे। उन तीन ब्राह्मणों की तीन पत्नियाँ थीं / वे इस प्रकार नागश्री, भूतश्री और यक्षश्री / वे सुकुमार हाथ-पैर आदि अवयवों वाली यावत् उन ब्राह्मणों की इष्ट थीं। वे मनुष्य संबंधी विपुल कामभोग भोगती हुई रहती थीं। सहभोज का निर्णय ४-तए णं तेसि माहणाणं अन्नया कयाई एगयओ सहियाणं समुवागयाणं, जाव [सन्निसन्नाणं सण्णिविट्ठाणं] इमेयारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था--'एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमे विपुले धण जाव [-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार--] सावतेज्जे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org