________________ 392] [ ज्ञाताधर्मकथा पर किसी ने कोई आपत्ति नहीं की, मानो वह एक साधारण घटना थी। इससे तत्कालीन सामाजिक रीति-रिवाजों पर अच्छा प्रकाश पड़ता है / द्रौपदी पाण्डवों के साथ हस्तिनापुर चली गई / वहाँ भी कुछ विधि-विधान हुए / वारी-वारी से वह पाण्डवों के साथ मानवीय सुखों का उपभोग करने लगी / एक बार नारदजी अचानक हस्तिनापुर जा पहुँचे। द्रौपदी के सिवाय सब ने उनकी यथोचित प्रतिपत्ति की / नारदजी द्रौपदी से रुष्ट हो गए। बदला लेने के विचार से धातकीखण्ड द्वीप में अमरकंका के राजा पद्मनाभ के वहाँ गये। द्रौपदी के रूप-लावण्य की अतिशय प्रशंसा करके पद्मनाभ को ललचाया / पद्मनाभ ने देवी सहायता से द्रौपदी का हरण करवाया / द्रौपदी के संस्कार अब बदल चुके थे। वह पतिव्रता थी। पद्मनाभ ने दौपदी को भोग के लिए आमंत्रित किया तो उसने छह महीने की मोहलत माँग ली। उसे विश्वास था कि इस बीच उसके रिश्ते के भाई श्रीकृष्ण आकर अवश्य मेरा उद्धार करेंगे / हुअा भी यही / पाण्डवों को साथ लेकर कृष्णजी अमरकंका राजधानी जा पहुंचे। उन्होंने पद्मनाभ को युद्ध में पराजित किया। राजधानी को तहस-नहस कर दिया / द्रौपदी का उद्धार हुआ। यथासमय द्रौपदी ने एक पुत्र को जन्म दिया। नाम हुआ पाण्डुसेन / पाण्डुसेन जब समर्थ, कलाकुशल और राज्य का संचालन करने योग्य हो गया तब पाण्डव उसे सिंहासनासीन करके दीक्षित हो गए। द्रौपदी ने अपने पतियों का अनुसरण किया / अन्त में पाण्डवों ने मुक्ति प्राप्त की और द्रौपदी आर्या ने स्वर्ग प्राप्त किया। प्रस्तुत अध्ययन काफी विस्तृत है। यह इस अध्ययन का अतिसंक्षिप्त सार है। विशेष के लिए जिज्ञासु स्वयं इस अध्ययन का स्वाध्याय करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org