________________ चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ] [ 377 तेयलिपुत्तेणं पासगं गोवाए बंधेता जाव रज्जू छिन्ना, को मेदं सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं महासिलयं जाव बंधित्ता अस्थाह जाव उदगंसि अप्पा मुक्के तत्थ वि य णं थाहे जाए, को मेदं सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं सुक्कंसि तणकूडे अग्गी विज्झाए, को मेदं सदहिस्सइ ? ओहयमणसंकप्पे जाव [करयलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए] झियाइ / तत्पश्चात् तेतलिपुत्र मन ही मन इस प्रकार बोला-'श्रमण श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं, माहन श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं, श्रमण और माहन श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं / मैं ही एक हूँ जो अश्रद्धेय वचन कहता हूँ / मैं पुत्रों सहित होने पर भी पुत्रहीन हूँ, कौन मेरे इस कथन पर श्रद्धा करेगा ? मैं मित्रों सहित होने पर भी मित्रहीन हूँ, कौन मेरी इस बात पर विश्वास करेगा ? इसी प्रकार धन, स्त्रो, दास और परिवार से सहित होने पर भो मैं इनसे रहित हूँ, कौन मेरी इस बात पर श्रद्धा करेगा? इस प्रकार राजा कनकध्वज के द्वारा जिसका बुरा विचारा गया है, ऐसे तेतलिपुत्र अमात्य ने अपने मुख में विष डाला, मगर विष ने कुछ भी प्रभाव न दिखलाया, मेरे इस कथन पर कौन विश्वास करेगा ? तेतलिपुत्र ने अपने गले में नील कमल जैसो तलवार का प्रहार किया, मगर उसकी धार कुठित हो गई, कौन मेरी इस बात पर श्रद्धा करेगा? तेतलिपुत्र ने अपने गले में फाँसी लगाई, मगर रस्सी टूट गई. मेरी इस बात पर कौन भरोसा करेगा? तेतलिपुत्र ने गले में भारी शिला बाँधकर अथाह जल में अपने आपको छोड़ दिया, मगर वह पानो थाह-छिछला हो गया, मेरी यह बात कौन मानेगा। तेतलिपुत्र सूखे घास में आग लगा कर उसमें कूद गया, मगर आग बुझ गई, कौन इस बात पर विश्वास करेगा? इस प्रकार तेतलिपुत्र भग्नमनोरथ होकर हथेली पर मुख रहकर प्रार्तध्यान करने लगा। ५०-तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ, विउवित्ता तेय लिपुत्तस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासो-'हं भो तेयलिपुत्ता ! पुरओ पवाए, पिटुओ हस्थिभयं, दुहओ अचक्खुफासे, मज्झे सराणि वरिसंति, गामे पलत्ते, रन्ने झियाइ, रन्ने पलिते गामे झियाइ, आउसो तेलियुत्ता! कओ वयामो ?' तब पोदिल देव ने पोट्रिला के रूप की विक्रिया की। विक्रिया करके तेतलिपुत्र से न बहत दूर और न बहुत पास स्थित होकर इस प्रकार कहा-'हे तेतलिपुत्र ! आगे प्रपात (गड़हा) है और पीछे हाथी का भय है। दोनों बगलों में ऐसा अंधकार है कि आँखों से दिखाई नहीं देता / मध्य भाग में वाणों की वर्षा हो रही है / गाँव में आग लगी है और वन धधक रहा है। वन में आग लगो है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org