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________________ 342] [ ज्ञाताधर्मकथा प्रादि से यावत् परिवृत होकर बहुमूल्य और राजा के योग्य उपहार लिया और श्रेणिक राजा के पास पहुँचा / उपहार राजा के समक्ष रखा और इस प्रकार कहा–'स्वामिन् ! अापकी अनुमति पाकर राजगृह नगर के बाहर यावत् पुष्करिणी खुदवाना चाहता हूँ।' राजा ने उत्तर दिया--'जैसे सुख उपजे, वैसा करो।' पुष्करिणीवर्णन १२-तए णं गंदे सेणिएणं रण्णा अम्भणुष्णाए समाणे हट्ठ-तुट्ठ रायगिहं मझंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गछित्ता वत्थुपाढयरोइयंसि भूमिभागंसि गंदं पोक्खरिणि खणाविउं पयत्ते यावि. होत्था। तए णं सा गंदा पोक्खरिणी अणुपुब्बेणं खणमाणा' खणमाणा पोक्खरिणी जाया याचि होत्थाचाउकोणा, समतीरा, अणुपुव्वसुजायवप्पसीयलजला, संछण्णपत्त-विस-मुणाला बहुप्पल-पउम-कुमुद नलिणी-सुभग-सोगंधिय-पुडरोय-महापुडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त-पफुल्लकेसरोववेया परिहत्थ-भमंतमत्तछप्पय-अणेग-सउणगण-मिहुण-वियरिय-सदुन्नइय-महुरसरनाइया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूबा। तत्पश्चात् नन्द मणिकार सेठ श्रेणिक राजा से ग्राज्ञा प्राप्त करके हृष्ट-तुष्ट हुया / वह राजगह नगर के बीचों बीच होकर निकला। निकलकर वास्तुशास्त्र के पाठकों (शिल्पशास्त्र के ज्ञातानों) द्वारा पसंद किए हुए भूमिभाग में नंदा नामक पुष्करिणी खुदवाने में प्रवृत्त हो गया उसने पुष्करिणी का खनन-कार्य प्रारंभ करवा दिया। तत्पश्चात् नंदा पुष्करिणी अनुक्रम से खुदती-खुदती चतुष्कोण और समान किनारों वाली पूरी पुष्करिणी हो गई / अनुक्रम से उसके चारों ओर घूमा हुआ परकोटा बन गया, उसका जल शीतल हना / जल पत्तों, बिसतंतुओं और मृणालों से आच्छादित हो गया / वह वापी बहुत-से खिले हुए उत्पल (कमल), पद्म (सूर्य विकासी कमल), कुमुद (चन्द्रविकासी कमल), नलिनी (कमलिनी-सुन्दर कमल), सुभग जातिय कमल, सौगंधिक कमल, पुण्डरीक (श्वेत कमल), महापुण्डरीक, शतपत्र (सौ पंखड़ियों वाले) कमल, सहस्रपत्र (हजार पंखुड़ियों वाले) कमल की केसर से युक्त हुई / परिहत्थ नामक जल-जन्तुओं, भ्रमण करते हुए मदोन्मत्त नमरों और अनेक पक्षियों के युगलों द्वारा किए हुए शब्दों से उन्नत और मधुर स्वर से वह पुष्करिणी गूंजने लगी / वह सबके मन को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो गई। वनखण्डों का निर्माण १३–तए णं से गंदे मणियारसेट्ठी गंदाए पोक्खरिणीए चउद्दिसि चत्तारि वणसंडे रोवावे / तए णं ते बणसंडा अणुपुब्वेणं सारक्खिज्जमाणा य संगोविज्जमाणा य संवडियमाणा य वणसंडा जाया -किण्हा जाव' निकुरंबभूया पत्तिया पुफिया जाव [फलिया हरियगरेरिज्जमाणा सिरीए अईव] उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति / / तत्पश्चात् नंद मणिकार श्रेष्ठी ने नंदा पुष्करिणी की चारों दिशाओं में चार वनखण्ड रुपवाये-लगवाये। उन वनखण्डों की क्रमशः अच्छो रखवाली की गई, संगोपन सार-संभाल की गई, 1. पाठान्तर-खम्ममाणा खम्ममाणा 2. अ. 7 सुत्र. 11 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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