________________ दशम अध्ययन : चन्द्र जम्बूस्वामी का प्रश्न १–जइ गं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं णवमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णते, दसमस्स णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? श्री जम्बूस्वामी श्री सुधर्मास्वामी से प्रश्न करते हैं-'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने नौवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो दसवें ज्ञात-अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?' सुधर्मा का उत्तर २--एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था / तत्थ णं रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्था। तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थ णं गुणसोलए णामं चेइए होत्था। श्री सुधर्मास्वामी उत्तर देते हैं—'हे जम्बू ! इस प्रकार निश्चय ही उस काल और समय में राजगृह नामक नगर था / उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था / उस राजगृह नगर के बाहर उत्तर-पूर्वदिशा-ईशानकोण में गुणशील नामक चैत्य-उद्यान था। 3- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुचि चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, सुहं सुहेणं विहरमाणे, जेणेव गुणसोलए चेइए तेणेव समोसढे / परिसा निग्गया। सेणिओ वि राया निग्गओ / धम्म सोच्चा परिसा पडिगया। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाते हुए सुखे-सुखे विहार करते हुए, जहां गुणशील चैत्य था, वहीं पधारे / भगवान् की वन्दना-उपासना करने के लिए परिषद् निकली / श्रेणिक राजा भी निकला / धर्मोपदेश सुन कर परिषद् लौट गई। हानि-वृद्धि संबंधी प्रश्न ४--तए णं गोयमसामी समणं भगवं महावीरं एवं वयासो-कहं णं भंते ! जीवा वड्ढति वा हायंति वा?' तत्पश्चात् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार कहा (प्रश्न किया)"भगवन् ! जीव किस प्रकार वृद्धि को प्राप्त होते हैं और किस प्रकार हानि को प्राप्त होते हैं ?' विवेचन-जीव शाश्वत, अनादि और अनन्त हैं, अतएव उनकी संख्या में वृद्धि-हानि नहीं होती। एक-एक जीव असंख्यात-असंख्यात प्रदेशों वाला है / उसके प्रदेशों में भी कभी वृद्धि हानि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org