________________ 308 ] [ ज्ञाताधर्मकथा ६७--एवामेव समणाउसो ! जाव माणुस्सए कामभोगे जो पुणरवि आसाइ, से णं जाव वोइवइस्सइ, जहा वा से जिणपालिए / इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो ! प्राचार्य-उपाध्याय के समीप दीक्षित होकर जो साधु या साध्वो मनुष्य संबंधी कामभोगों की पुनः अभिलाषा नहीं करता, वह जिनपालित की भाँति यावत् संसार-समुद्र को पार करेगा। ६८-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स नायज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते त्ति बेमि॥ इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नौवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ प्ररूपण किया है। जैसा मैंने सुना है, उसी प्रकार तुमसे कहता हूँ / (ऐसा सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी से कहा / ) नववाँ अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org