________________ 306 ] [ ज्ञाताधर्मकथा चारित्र ग्रहण करके भी जो भोगों की इच्छा करते हैं, वे घोर संसार-सागर में गिरते हैं और जो भोगों की इच्छा नहीं करते, वे संसार रूपी कान्तार को पार कर जाते हैं // 2 // ६०-तए णं सा रयणद्दीवदेवया जेणेव जिणपालिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूहि अणुलोमेहि य पडिलोमेहि य खर-महर-सिंगारेहि कलुणेहि य उवसग्गेहि य जाहे नो संचाएइ चालित्तए वा खोभित्तए वा विष्परिणामित्तए वा, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। तत्पश्चात् वह रत्नद्वीप की देवी जिनपालित के पास आई। आकर बहुत-से अनुकूल, प्रतिकूल, कठोर, मधुर, शृगार वाले और करुणाजनक उपसर्गों द्वारा जब उसे चलायमान करने, क्षुब्ध करने एवं मन को पलटने में असमर्थ रही, तब वह मन से थक गई, शरीर से थक गई, पूरी तरह ग्लानि को प्राप्त हुई और अतिशय खिन्न हो गई। तब वह जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। ६१-तए णं से सेलए जक्खे जिणपालिएणं सद्धि लवणसमुई मज्झं-मज्झेणं वीईवयइ, बोईवइत्ता जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चपाए नयरीए अग्गुज्जाणंसि जिणपालियं पिट्ठाओ ओयारेइ, ओयारित्ता एवं वयासी 'एस णं देवाणुप्पिया ! चंपा नयरी दोसइ' त्ति कटु जिणपालियं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए। ___ तत्पश्चात् वह शैलक यक्ष, जिनपालित के साथ, लवणसमुद्र के बीचोंबीच होकर चलता रहा / चल कर जहाँ चम्पा नगरी थी, वहाँ अाया। आकर चम्पा नगरी के बाहर श्रेष्ठ उद्यान में जिनपालित को अपनी पीठ से नीचे उतारा। उतार कर उसने इस प्रकार कहा-'हे देवानृप्रिय ! देखो, यह चम्पा नगरी दिखाई देती है। यह कह कर उसने जिनपालित से छुट्टी ली। छुट्टी लेकर जिधर से आया था, उधर ही लौट गया। ६२-तए णं जिणपालिए चंपं अणुपविसइ, णणुपविसित्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव अम्मापियरो, तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं रोयमाणे जाव' विलवमाणे जिणरक्खियवात्ति निवेदेइ / तए णं जिणपालिए अम्मापियरो मित्तणाइ जाव परियणेणं सद्धि रोयमाणा बहूई लोइयाई मय किच्चाई करेन्ति, करित्ता कालेणं विगयसोया जाया। तदनन्तर जिनपालित ने चम्पा में प्रवेश किया और जहाँ अपना घर तथा माता-पिता थे वहाँ पहुँचा / पहुँच कर उसने रोते-रोते और विलाप करते-करते जिनरक्षित की मृत्यु का समाचार सुनाया। तत्पश्चात् जिनपालित ने और उसके माता-पिता ने मित्र, ज्ञाति, स्वजन यावत् परिवार के 1. नवम अ. 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org