________________ नवम अध्ययन : माकन्दी] [287 तत्पश्चात् माता-पिता जब उन माकंदीपुत्रों को सामान्य कथन और विशेष कथन के द्वारा सामान्य या विशेष रूप से समझाने में समर्थ न हुए; तब इच्छा न होने पर भी उन्होंने उस बात कीसमुद्रयात्रा की अनुमति दे दी। ८-तए णं ते मागंदियदारया अम्मापिऊहि अभणुषणाया समाणा गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च जहा अरहण्णगस्स जाव लवणसमुई बहूइं जोयणसयाई ओगाढा / तए णं तेसि मागंदियदारगाणं अणेगाई जोयणसयाई ओगाढाणं समाणाणं अणेगाई उप्पाइयसयाई पाउम्भूयाई। तत्पश्चात् वे माता-पिता की अनुमति पाये हुए माकंदीपुत्र गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य-चार प्रकार का माल जहाज में भर कर अर्हन्नक को भाँति लवणसमुद्र में अनेक सैकड़ों योजन तक चले गये। तत्पश्चात् उन माकंदीपुत्रों के अनेक सैकड़ों योजन तक अवगाहन कर जाने पर सैकड़ों उत्पात (उपद्रव) उत्पन्न हुए। ९-तं जहा--अकाले गज्जियं जाव (अकाले विज्जुए, अकाले) थणियसद्दे कालियवाए तत्थ समुट्ठिए। वे उत्पात इस प्रकार थे--अकाल में गर्जना होने लगी, अकाल में बिजली चमकने लगी, अकाल में स्तनित शब्द (गहरी मेघगर्जना की ध्वनि) होने लगी। प्रतिकूल तेज हवा (आँधी) चलने लगी। नौका-भंग १०–तए णं सा णावा तेणं कालियवाएणं आहणिज्जमाणी आहुणिज्जमाणी संचालिज्जमाणी संचालिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी सलिल-तिक्ख-वेगेहि आयट्टिज्जमाणी आयट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि करतलाहते विव तेंदूसए तत्थेव तत्थेव ओवयमाणी य उप्पयमाणी य, उप्पयमाणीविव धरणीयलाओ सिद्धविज्जाविज्जाहरकन्नगा, ओवयमाणीविव गगणतलाओ भविज्जा विज्जाहरकन्नगा, विपलायमाणीविव महागरुलवेगवित्तासिया भयगवरकन्नगा, धावमाणीविव महाजणरसियसद्दवित्तत्था ठाणभट्ठा आसकिसोरी, णिगुंजमाणोविव गुरुजणादिद्वावराहा सुयण-कुलकन्नगा, धुम्ममाणोविव वीची-पहार-सत-तालिया, गलिय-लंबणाविव गगणतलाओ, रोयमाणीविव सलिलगंठिविप्पइरमाणघोरंसुवाएहिं णववहू उबरतभत्तुया, विलवमाणीविव परचक्करायाभिरोहिया परममहब्भयाभिदुयया महापुरवरी, झायमाणोविव कवडच्छोमप्पओगजुत्ता चोगपरिवाइया, णिसासमाणीविव महाकंतार- विणिग्गयपरिस्संता परिणयवया अम्मया, सोयमाणीविव तवचरण-खीणपरिभोगा चयणकाले देववरवह, संचण्णियकटकराव, भग्ग-मेढि-मोडिय.सहस्समाला, सूलाइयवंकपरिमासा, फलहंतर-तडतडेत- फुस-संधिवियलंत-लोहकोलिया, सव्वंग-वियंभिया, परिसडिय-रज्जुविसरंत-सव्वगत्ता, आमगमल्लगभूया, अकयपुण्ण-जणमणोरहो विव चितिज्जमाणागुरुई, हाहाकयकण्णधार-नाविय-वाणियगजण-कम्मगार-विलविया, शाणाविह-रयण-पणिय-संपुष्णा, बहिं पुरिस'सएहि रोयमाणेहि कंदमणेहि सोयमाणेहि तिप्पमाहि विलवमाणेहि एगं महं अंतोजलगयं गिरिसिहरमासायइत्ता संभग्गकूवतोरणा मोडियझयदंडा वलयसयखंडिया करकरस्स तत्थेव विद्दवं उवगया। तत्पश्चात् वह नौका (पोतवहन) प्रतिकूल तूफानी वायु से बार-बार काँपने लगी, बार-बार एक जगह से दूसरी जगह चलायमान होने लगी, वार-बार संक्षुब्ध होने लगी-नीचे डूबने लगी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org