________________ 286 ] [ ज्ञाताधर्मकथा विघ्न के अपने घर आ गये। तो हे देवानुप्रिय ! बारहवीं वार भी पोतवहन से लवणसमुद्र में अवगाहन करना हमारे लिए अच्छा रहेगा।' इस प्रकार विचार करके उन्होंने परस्पर इस अर्थ (विचार) को स्वीकार किया। स्वीकार करके जहाँ माता-पिता थे, वहाँ आये और प्राकर इस प्रकार बोले 5- 'एवं खलु अम्हे अम्मयाओ ! एक्कारस वारा तं चेव जाव' निययं घरं हव्वमागया, तं इच्छामो णं अम्मयाओ ! तुभेहि अब्भणुण्णाया समाणा दुवालसमं लवणसमुइं पोयवहणेणं ओगाहित्तए।' तए णं ते मागंदियदारए अम्मापियरो एवं वयासो---'इमे ते जाया! अज्जग [पज्जगपिउपज्जगागए सुबहु हिरण्णे य सुवण्णे य कसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्त-रयणसंतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दागं, पगामं भोत्तु पगामं] परिभाएउं, तं अणुहोह ताव जाया ! विउले माणुस्सए इड्डीसक्कारसमुदए। किं भे सपच्चवाएणं निरालंबणेणं लवणसमुद्दोत्तारेणं? एवं खलु पुत्ता ! दुवालसमी जता सोवसग्गा यावि भवइ / तं मा णं तुम्भे दुवे पुत्ता दुवालसमं पि लवणसमुदं जाव (पोयवहणेणं) ओगाहेह, मा हु तुम्भं सरीरस्स वावत्ती भविस्सइ। 'हे माता-पिता ! आपकी अनुमति प्राप्त करके हम बारहवीं बार लवणसमुद्र की यात्रा करना चाहते हैं / हम लोग ग्यारह बार पहले यात्रा कर चुके हैं और सकुशल सफलता प्राप्त करके लौटे हैं।' तब माता-पिता ने उन माकन्दीपुत्रों से इस प्रकार कहा–'हे पुत्रो! यह तुम्हारे बाप-दादा (पड़दादा से प्राप्त बहुत-सा हिरण्य, स्वर्ण, कांस्य, दूष्य, मणि, मुक्ता, शंख, शिला, भूगा, लाल आदि उत्तम सम्पति मौजूद है जो सात पीढ़ी तक खूब देने, भोगने एवं) बंटवारा करने के लिए पर्याप्त है। अतएव पुत्रो ! मनुष्य संबंधी विपुल ऋद्धि सत्कार के समुदाय वाले भोगों को भोगो / विध्नबाधाओं से युक्त और जिसमें कोई आलम्बन नहीं ऐसे लवणसमुद्र में उतरने से क्या लाभ है ? हे पुत्रो ! बारहवीं (बार की) यात्रा सोपसर्ग (कष्टकारी) भी होती है / अतएव हे पुत्रो ! तुम दोनों बारहवीं बार लवणसमुद्र में प्रवेश मत करो, जिससे तुम्हारे शरीर को व्यापत्ति (विनाश या पीड़ा) न हो।' ६-तए णं मागंदियदारगा अम्मापियरो दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी--'एवं खलु अम्हे अम्मयाओ! एक्कारस वारा लवणसमुद्दे ओगाढा / सव्वत्थ वि य णं लट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि नियघरं हव्वमागया। तं सेयं खलु अम्मयाओ! दुवालसंपि लवणसमुदं ओगाहित्तए। तत्पश्चात् माकन्दीपुत्रों ने माता-पिता से दूसरी बार और तीसरी बार इस प्रकार कहा'हे माता-पिता ! हमने ग्यारह बार लवणसमुद्र में प्रवेश किया है, प्रत्येक बार धन प्राप्त किया, कार्य सम्पन्न किया और निर्विघ्न घर लौटे / हे माता-पिता ! अतः बारहवीं बार प्रवेश करने की हमारी इच्छा है।' ७-तए णं मागंदीदारए अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा, ताहे अकामा चेव एयमझें अणुजाणित्था। 1. देखिये चतुर्थ सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org