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________________ 266] [ज्ञाताधर्मकथा मल्ली कुमारी ने पूर्वभव का स्मरण कराते हुए आगे कहा--'इस प्रकार हे देवानुप्रियो ! तुम और हम इससे पहले के तीसरे भव में, पश्चिम महाविदेहवर्ष में, सलिलावती विजय में, वीतशोका नामक राजधानी में महाबल आदि सातों-मित्र राजा थे। हम सातों साथ जन्मे थे, यावत् साथ ही दीक्षित हुए थे। हे देवानुप्रियो ! उस समय इस कारण से मैंने स्त्रीनामगोत्र कर्म का उपार्जन किया था--- अगर तुम लोग एक उपवास करके विचरते थे, तो मैं तुम से छिपाकर बेला करती थी, इत्यादि सब वृत्तान्त पूर्ववत् समझना चाहिए / १४३-तए णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! कालमासे कालं किच्चा जयंते विमाणे उववण्णा। तत्थ णं तुम्भे देसूणाई बत्तीसाइं सागरोवमाई ठिई। तए णं तुम्भे ताओ देवलोयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दोवे जाव साइं साइं रज्जाइं उवसंपज्जित्ता णं विहरह / / तए णं अहं देवाणुप्पिया ! ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव दारियत्ताए पच्चायायाकिंथ तयं पम्हुळं, जं थ तया भो जयंत पवरम्मि / वुत्था समयनिबद्धं, देवा! तं संभरह जाई // 1 // तत्पश्चात् हे देवानुप्रियो ! तुम कालमास में काल करके- यथासमय देह त्याग कर जयन्त विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ तुम्हारी कुछ कम बत्तीस सागरोपम की स्थिति हुई। तत्पश्चात् तुम उस देवलोक से अनन्तर (सीधे) शरीर त्याग करके--- चय करके—इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्पन्न हुए, यावत् अपने-अपने राज्य प्राप्त करके विचर रहे हो। मैं उस देवलोक से आयु का क्षय होने पर कन्या के रूप में पाई हूँ—जन्मी हूँ। 'क्या तुम वह भूल गये? जिस समय हे देवानुप्रिय ! तुम जयन्त नामक अनुत्तर विमान में वास करते थे ? वहाँ रहते हुए 'हमें एक दूसरे को प्रतिबोध देना चाहिए ऐसा परस्पर में संकेत किया था / तो तुम देवभव का स्मरण करो।' १४४-तए णं तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं रायाणं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए अंतिए एयम→ सोच्चा णिसम्म सुभेणं परिणामेणं, पसत्थेणं अज्झबसाणेणं, लेसाहि विसुज्झमणीहि, तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओबसमेणं ईहा-वूह-मन्गण-गवेसणं करेमाणाणं सणिपुत्वे जाइस्सरणे समुष्पन्ने / एयमद्रं सम्मं अभिसमागच्छंति / तत्पश्चात् विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली से पूर्वभव का यह वृत्तान्त सुनने और हृदय में धारण करने से, शुभ परिणामों, प्रशस्त अध्यवसायों, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं और जातिस्मरण को आच्छादित करने वाले कर्मों के क्षयोपशम के कारण, ईहा--अपोह (सद्भूत-असद्भूत धर्मों की पर्यालोचना) तथा मार्गणा और गवेषणा–विशेष विचार करने से जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं को ऐसा जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ कि जिससे वे संज्ञी अवस्था के अपने पूर्वभव को देख सके / इस ज्ञान के उत्पन्न होने पर मल्ली कुमारी द्वारा कथित अर्थ--वृत्तान्त को उन्होंने सम्यक् प्रकार से जान लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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