________________ आठवां अध्ययन : मल्लो / [ 241 हे देवानुप्रिय ! मैंने जाना। जानकर ईशानकोण में जाकर उत्तर वैक्रियशरीर बनाने के लिए वैक्रियसमुद्घात किया। तत्पश्चात् उत्कृष्ट यावत् शीघ्रता वाली देवगति से जहाँ लवणसमुद्र था और जहाँ देवानुप्रिय (तुम) थे, वहाँ मैं प्राया / आकर मैंने देवानुप्रिय को उपसर्ग किया। मगर देवानुप्रिय भयभीत न हुए, त्रास को प्राप्त न हुए। अत: देवेन्द्र देवराज ने जो कहा था, वह अर्थ सत्य सिद्ध हुआ। मैंने देखा कि देवानुप्रिय को ऋद्धि-गुण रूप समृद्धि, द्यु ति-तेजस्विता, यश, शारीरिक बल यावत पुरुषकार, पराक्रम लब्ध हा है, प्राप्त हना है और उसका ने भली-भाँति सेवन किया है। तो हे देवानुप्रिय! मैं आपको खमाताहूँ। आप क्षमा प्रदान करने योग्य हैं। हे देवानुप्रिय! अब फिर कभी मैं ऐसा नहीं करू गा।' इस प्रकार कहकर दोनों हाथ जोड़कर देव अर्हन्नक के पावों में गिर गया और इस घटना के लिए बार-बार विनयपूर्वक क्षमायाचना करने लगा / क्षमायाचना करके अर्हन्नक को दो कुडल-युगल भेंट किये / भेंट करके जिस दिशा से प्रकट हुआ था, उसी दिशा में लौट गया। ७२-तए णं अरहन्नए निरुवसग्गमित्ति कट्ट पडिम पारेइ। तए णं ते अरहन्नगपामोक्खा जाव [संजत्तानावा] वाणियगा दक्खिणाणकलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयफ्टणे यफ्टणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पोयं लंबंति, लंबित्ता सडिसागडं सज्जेति, सज्जित्ता तं गणिमं धरिमं मेज्जं परिच्छेज्ज सगडिसागडं संकामेंति, संकामित्ता सगडिसागडं जोएंति, जोइत्ता जेणेव मिहिला नगरी तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडिसागडं मोएन्ति, मोइत्ता मिहिलाए रायहाणीए तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायरिहं पाहुडं कुडलजुयलं च गेण्हंति, गेण्हित्ता मिहिलाए रायहाणीए अणुपविसंति, अणुपविसित्ता जेणेव कुभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव [परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि] कटु तं महत्थं दिव्वं कुंडलजुयलं उवणेति जाव पुरओ ठति / तत्पश्चात् अर्हन्नक ने उपसर्ग टल गया जानकर प्रतिमा पारी अर्थात् कायोत्सर्ग पारा / तदनन्तर वे अर्हनक आदि यावत् नौकावणिक् दक्षिण दिशा के अनुकूल पवन के कारण जहां गम्भीर नामक पोतपट्टन था, वहां आये / पाकर उस पोत (नौका या जहाज) को रोका / रोककर गाड़ी-गाड़े तैयार किये। तैयार करके वह गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य भांड को गाड़ी-गाड़ों में भरा / भरकर गाड़ी-गाड़े जोते / जोतकर जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ आये / पाकर मिथिला नगरी के बाहर उत्तम उद्यान में गाड़ी-गाड़े छोड़े / छोड़कर मिथिला नगरी में जाने के लिए वह महान् अर्थ वाली, महामूल्य वाली, महान् जनों के योग्य, विपुल और राजा के योग्य भेंट और कुडलों की जोड़ी ली। लेकर मिथिला नगरी में प्रवेश किया। प्रवेश करके जहाँ कुम्भ राजा था, वहाँ आये / आकर दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक पर अंजलि करके वह महान् अर्थ वाली भेंट और वह दिव्य कुडलयुगल राजा के समीप ले गये, यावत् राजा के सामने रख दिया। ७३-तए णं कुभए राया तेसि संजत्तगाणं नावावाणियगाणं जाव' पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मल्लि विदेहवररायकन्नं सद्दावेइ, सहावित्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं मल्लीए विदेहवररायकन्नगाए पिणद्धइ, पिणद्धित्ता पडिविसज्जेइ। 1. अ. अ. 72 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org