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________________ 224] ज्ञिाताधर्मकथा पर स्थित होने पर, सभी दिशाएं सौम्य-उत्पातरहित, वितिमिर-अन्धकार से रहित और विशुद्धधूलादि से रहित थीं, वायु दक्षिणावर्त्त-अनुकूल था, विजयकारक शकुन हो रहे थे, जब देश के सभी लोग प्रमुदित होकर क्रीड़ा कर रहे थे, ऐसे समय में, आरोग्य-आरोग्यपूर्वक अर्थात् विना किसी बाधा-पीड़ा के उन्नीसवें तीर्थंकर को जन्म दिया / कहन ३०-तेणं कालेणं तेणं समएणं अहोलोगवत्थवाओ अट्ट दिसाकुमारीओ महयरीयाओ जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जम्मणं सव्वं भाणियब्दं / नवरं मिहिलाए नयरीए कुभरायस्स भवणंसि पभावईए देवीए अभिलावो संदोए वो जाव नंदीसरवरे दीवे महिमा / उस काल और उस समय में अधोलोक में बसने वाली महत्तरिका दिशा-कुमारिकाएं आई इत्यादि जन्म का जो वर्णन जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में पाया है, वह सब यहां समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि मिथिला नगरी में, कुम्भ राजा के भवन में, प्रभावती देवी का आलापक कहना-नाम हना चाहिए / यावत् देवों ने जन्माभिषेक करके नन्दीश्वर द्वीप में जाकर (अठाई) महोत्सव किया / ३१-तया णं कुभए राया बहूहि भवणवइवाण-वितर-जोइसिय-वेमाणिएहि देवेहि तित्थयरजम्मणाभिसेयं जायकम्म जाव नामकरणं, जम्हा णं अम्हे इमीए दारियाए माउगभंसि वक्कममाणंसि मल्लसयणिज्जसि डोहले विणीए, तं होउ णं णामेणं मल्ली, नाम ठवेइ, जहा महाबले नाम जाव परिवड्डिया। [ सा वडई भगवई, दियालोयचुया अणोपमसिरीया / दासीदासपरिवुडा, परिकिन्ना पीढमहिं // 1 // असियसिरया सुनयणा, बिबोट्ठी धवलदंतपंतीया। वरकमलगभगोरी फुल्लुप्पलगंधनीसासा // 2 // ] तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने एवं बहुत-से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों ने तीर्थकर का जन्माभिषेक किया, फिर जातकर्म आदि संस्कार किये, यावत नामकरण कियाक्योंकि जब हमारी यह पुत्री माता के गर्भ में आई थी, तब माल्य (पुष्प) की शय्या में सोने का दोहद उत्पन्न हना था और वह पूर्ण हया था, अतएव इसका नाम 'मल्ली' हो / ऐसा कहकर उसका मल्ली नाम रखा / जैसे भगवतीसूत्र में महाबल नाम रखने का वर्णन है, वैसा ही यहां जानना चाहिए / यावत् मल्ली कुमारी क्रमशः वृद्धि को प्राप्त हुई। [देवलोक से च्युत हुई वह भगवती मल्ली वृद्धि को प्राप्त हुई तो अनुपम शोभा से सम्पन्न हो गई, दासियों और दासों से परिवृत हुई और पीठमर्दो (सखायों) से घिरी रहने लगी। उसके मस्तक के केश काले थे, नयन सुन्दर थे, होठ बिम्बफल के समान लाल थे, दांतों की कतार श्वेत थी और शरीर श्रेष्ठ कमल के गर्भ के समान गौरवर्ण वाला था। उसका श्वासोच्छ्वास विकस्वर कमल के समान गंध वाला था।] विवेचन-टीकाकार का कथन है कि प्रायः स्त्रियों के पीठमर्दक नहीं होते, अतः यह विशेषण यहां सम्भव नहीं। या फिर तीर्थकर का चरित्र लोकोत्तर होता है, अतः असम्भव भी नहीं समझना चाहिए। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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