________________ आठवां अध्ययन: मल्ली] [223 पाउन्भूए–'धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं जल-थलयभासुरप्पएणं दसवण्णणं मल्लेणं अत्युय-पच्चत्युयंसि सयणिज्जसि सन्निसन्नाओ सण्णिवन्नाओ य विहरति / एगं च महं सिरीदामगंडं पाडल-मल्लिय-चंपय-असोग-पुन्नाग-मरुयग-दमणग-अणोज्ज-कोज्जय-कोरंट-पत्तवरपउरं परमसुहफासदरिसणिज्ज महया गंधद्धणि मुयंत अग्घायमाणीओ डोहलं विणेति / तत्पश्चात् प्रभावती देवी को तीन मास बराबर पूर्ण हुए तो इस प्रकार का दोहद (मनोरथ) उत्पन्न हुग्रा-वे माताएं धन्य हैं जो जल और थल में उत्पन्न हुए देदीप्यमान, अनेक पंचरंगे पुष्पों से आच्छादित और पुनः पुनः आच्छादित की हुई शय्या पर सुखपूर्वक बैठी हुई और सुख से सोई हुई विचरती हैं तथा पाटला, मालती, चम्पा, अशोक, पुनाग के फूलों, मरुवा के पत्तों, दमनक के फूलों, निर्दोष शतपत्रिका के फूलों एवं कोरंट के उत्तम पत्तों से गूथे हुए, परमसुखदायक स्पर्श वाले, देखने में सुन्दर तथा अत्यन्त सौरभ छोड़ने वाले श्रीदामकाण्ड (सुन्दर माला) के समूह को सू घती हुई अपना दोहद पूर्ण करती हैं। २८--तए णं तीसे पभावईए देवीए इमेयारूवं डोहलं पाउन्भूयं पासित्ता अहासन्निहिया वाणमंतरा देवा खिप्पामेव जलथलय-भासुरप्पभयं दसद्धवन्नमल्लं भग्गसो य भारगिसो य क भग रणो भवणंसि साहरंति / एगं च णं महं सिरिदामगंडं जाव' गंधद्धणि मुयंत उवणेति / तत्पश्चात् प्रभावती देवी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुया देख कर-जान कर समीपवर्ती वाण-व्यन्तर देवों ने शीघ्र ही जल और थल में उत्पन्न हुए यावत् पाँच वर्ण वाले पुष्प, कुम्भों और भारों के प्रमाण में अर्थात् बहुत से पुष्प कुम्भ राजा के भवन में लाकर पहुंचा दिये / इसके अतिरिक्त सुखप्रद एवं सुगन्ध फैलाता हुआ एक श्रीदामकाण्ड भी लाकर पहुँचा दिया। विवेचन माता की इच्छा की देवों द्वारा इस प्रकार पूत्ति करना गर्भस्थ तीर्थकर के असाधारण और सर्वोत्कृष्ट पुण्य का प्रभाव है। २९-तए णं सा पभावई देवी जलथलयभासुरप्पभूएणं मल्लेणं डोहलं विणेइ / तए णं सा पभावई देवी पसत्थडोहला जाव विहरइ। तए णं सा पभावई देवी नवव्ह मासाणं अट्ठमाण य रतिदियाणं जे से हेमंताणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे, तस्स णं मग्गसिरसुद्धस्स एक्कारसोए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अस्सिणीनक्खत्तेणं जोगमुवागएणं उच्चट्ठाणगएस गहेस जाव' पमुइयपक्कोलिएस् जणवएसु आरोयारोयं एगणवीसइमं तित्थयरं पयाया। तत्पश्चात् प्रभावती देवी ने जल और थल में उत्पन्न देदीप्यमान पंचवर्ण के फूलों की माला से अपना दोहला पूर्ण किया। तब प्रभावती देवी प्रशस्तदोहला होकर विचरने लगी। तत्पश्चात् प्रभावती देवी ने नौ मास और साढ़े सात दिवस पूर्ण होने पर, हेमन्त ऋतु के प्रथम मास में, दूसरे पक्ष में अर्थात् मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन. मध्य रात्रि में, अश्विनी नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग होने पर, सभी ग्रहों के उच्च स्थान 1. देखें पूर्व सूत्र 2. प्रष्ट अ.२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org