________________ प्राचीन भारतीय स्वप्नशास्त्रियों ने स्वप्नों के नौ कारण बतलाये है७८. (1) अनुभूत स्वप्न (अनुभव की हुई वस्तु का) (2) श्रुत स्वप्न (3) दृष्ट स्वप्न (4) प्रकृतिविकारजन्य स्वप्न (वात, पित्त, कफ की अधिकता और न्यूनता से) (5) स्वाभाविक स्वप्न (6) चिन्ता-समुत्पन्न स्वप्न (जिस पर पुनः पुनः चिन्तन किया हो) (7) देव प्रभाव से उत्पन्न होने वाला स्वप्न (8) धर्मक्रिया प्रभावोत्पादित स्वप्न और (9) पापोदय से आनेवाला स्वप्न / इसमें छह स्वप्न निरर्थक होते हैं और अन्त के तीन स्वप्न शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी विशेषावश्यक भाष्य में उनका उल्लेख किया है। हम जो स्वप्न देखते है इनमें कोई-कोई सत्य होते हैं। हम पूर्व में बता चुके हैं कि जब इन्द्रियाँ प्रसुप्त होती हैं और मन जाग्रत होता है तो उसके परदे पर भविष्य में होनेवाली घटनाओं का प्रतिविम्ब गिरता है। मन उन अज्ञात घटनों का साक्षात्कार करता है। वह सुषुप्ति और अर्ध-निद्रावस्था में भावी के कुछ प्रस्पष्ट संकेतों को ग्रहण कर लेता है और वे स्वप्न रूप में दिखायी देते हैं। स्वप्नशास्त्रियों ने यह भी बताया है कि किस समय देखा गया स्वप्न उत्तम और मध्यम होता है। रात्रि के प्रथम प्रहर में जो स्वप्न दीखते हैं उन का शुभ-अशुभ परिणाम बारह महीने में प्राप्त होता है। द्वितीय प्रहर के स्वप्नों का फल छह महीने में, तृतीय प्रहर के स्वप्नों का फल तीन महीने और चतुर्थ प्रहर में जब मुहूर्त भर रात्रि अवशेष रहती है उस समय जो स्वप्न दिखाई देता है उसका फल दस दिनों में मिलता है। सूर्योदय के समय के स्वप्न का फल बहुत ही शीघ्र मिलता है / जो स्वप्नपंक्ति देखते हैं या दिन में स्वप्न देखते हैं या मल-मूत्र प्रादि की व्याधि के कारण जो स्वप्न देखते हैं, वे स्वप्न सार्थक नहीं होते / पश्चिम रात्रि में शुभ स्वप्न देखने का एक ही कारण यह भी हो सकता है कि थका हुआ मन तीन प्रहर तक गहरी निद्रा पाने के कारण प्रशान्त हो जाता है। उसकी चंचलता मिट जाती है। ताजगी उसमें होती है और स्थिरता भी। अत: उस समय देखे गये स्वप्न शीघ्र फल प्रदान करते हैं। शुभ स्वप्न देखने के बाद स्वप्नद्रष्टा को नहीं सोना चाहिए। क्योंकि स्वप्नदर्शन के पश्चात नींद लेने से उस स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है। जो अशुभ स्वप्न हों उनको देखने के बाद मो सकते हैं, जिससे उनका अशुभ फल नष्ट हो जाय / शुभ स्वप्न पाने के पश्चात् धर्मचिन्तन करना चाहिए। रात्रि में सोते समय प्रसन्न होना चाहिए / मन में किसी प्रकार की वासनाएँ या उत्तेजना नहीं होनी चाहिए / नमस्कार महामंत्र जपते हुए या प्रभुस्मरण करते हुए जो निद्रा पाती है, उसमें अशुभ स्वप्न नहीं पाते, उसे अच्छी निद्रा पाती है और श्रेष्ठ स्वप्न दिखलायी पड़ते हैं। प्राचीन आचार्यों ने शुभ और अशुभ स्वप्न की एक सूची८० दी है / पर वह सूची पूर्ण हो एसी बात नहीं है। उनके अतिरिक्त भी कई तरह के स्वघ्न पाते हैं। उन स्वप्नों का सही अर्थ जानने के लिए परिस्थिति, वातावरण और व्यक्ति की अवस्था देखकर ही निर्णय करना चाहिये। 78. अनुभूतः श्रुतो दृष्ट: प्रकृतेश्च विकारजः / स्वभावतः समुद्भूत: चिन्तासंततिसंभवः / / देवताद्यपदेशोत्थो धर्मकर्मप्रभावजः / पापोद्रेकसमुत्थश्च स्वप्न: स्यान्नवधा नृणाम् / / प्रकाररादिमः षड्भि-रशुभश्चाशुभोपि वा। दृष्टो निरर्थको स्वप्नः सत्यस्तु विभिरुत्तरः / / 79. विशेषावश्यक भाष्य गाथा 1703 80. भगबती सूत्र 16-6 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org