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________________ 218] [ ज्ञाताधर्मकथा प्रमाण काल में भी संवेग, भावना एवं ध्यान का सेवन करना (14) तप करना (15) त्याग-मुनियों को उचित दान देना (16) नया-नया ज्ञान ग्रहण करना (17) समाधि--गुरु आदि को साता उपजाना (18) वैयावृत्य करना (19) श्रुत की भक्ति करना और (20) प्रवचन की प्रभावना करना, इन बीस कारणों से जीव तीर्थकरत्व की प्राप्ति करता है। तात्पर्य यह है कि इन बीस कारणों से महाबल मुनि ने तीर्थकर नामकर्म उपार्जन किया / महाबल आदि की तपस्या १५–तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अनगारा मासिअं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, जाव' एगराइअं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरति / तत्पश्चात् वे महाबल आदि सातों अनगार एक मास की पहली भिक्षु-प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे / यावत् बारहवीं एकरात्रिकी भिक्षु-प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे। (यहां यावत् शब्द से बीच की दस भिक्षु-प्रतिमाएँ इस प्रकार समझनी चाहिए-दूसरी दो मास की, तीसरी तीन मास की, चौथी चार मास की. पांचवीं पाँच मास की. छठी छह मास की. सातवीं सात मास की, आठवीं पाठ अहोरात्र को, नौवीं सात अहोरात्र की, दसवीं सात अहोरात्र की और ग्यारहवीं एक अहोरात्र की / इस प्रकार सब मिलकर बारह भिक्षु-प्रतिमाएँ हैं / ) १६--तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा खड्डाग सीहनिक्कोलियं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तंजहा-चउत्थं करेंति, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेंति, पारित्ता छठें करेंति, करित्ता चउत्थं करेंति, करित्ता अट्टमं करेंति, करित्ता छठें करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करिता अट्टमं करेंति, करिता दुवालसमं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करित्ता चाउद्दसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता चोद्दसमं करेंति, करिता अट्ठारसमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता वीसइमं करेंति, करिता अट्ठारसमं करेंति, करिता वोसइमं करेंति, करिता सोलसमं करेंति, करित्ता अट्ठारसमं, करेंति, करित्ता चोद्दसमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता चाउद्दसमं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता अट्ठमं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करिता छळं करेंति, करित्ता अट्रमं करेंति, करित्ता चउत्थं करेंति, करित्ता छळं करेंति, करिता चउत्थं करेंति / सव्वत्थ सव्वकामगुणिएणं पारेति / तत्पश्चात वे महाबल प्रति सातों अनगार क्षल्लक सिंहनिष्क्रीडित नामक तपश्चरण अंगीकार करके विचरने लगे / वह तप इस प्रकार किया जाता है-- सर्वप्रथम एक उपवास करे, उपवास करके सर्वकामगुणित ( विगय आदि सभी पदार्थों को ग्रहण करने के साथ) पारणा करे, पारणा करके दो उपवास करे, फिर एक उपवास करे, करके तीन उपवास (अष्टमभक्त) करे, करके दो उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके तीन उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके पाठ उपवास करे, करके सात उपवास करे, Jain Education International www.jainelibrary.org. For Private & Personal Use Only
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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