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________________ पाठवां अध्ययन : मल्ली] [217 प्रकार की तपस्या किया करेंगे। इस प्रकार कहकर सबने यह बात अंगीकार की। अंगीकार करके अनेक चतुर्थभक्त, बेला, तेला, चोला, पंचोला, मासखमण, अर्धमासखमण-एक-सी तपस्या करते हुए विचरने लगे। महाबल का मायाचार 13-- तए णं से महब्बले अणगारे इमेण कारणेणं इत्थिणामगोयं कम्मं नित्तिसुजइ णं ते महब्बलवज्जा छ अणगारा चउत्थं उवसंपज्जित्ता गं विहरंति, तओ से महब्बले अणगारे छठें उवसंपज्जित्ता णं विहरइ / जइ णं ते महब्बलवज्जा अणगारा छठें उवसंपज्जित्ता गं विहरंति, तओ से महब्बले अणगारे अट्ठमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ / एवं अट्ठमं तो दसम, अह दसमं तो दुवालसमं / तत्पश्चात् उन महाबल अनगार ने इस कारण से स्त्रीनामगोत्र कर्म का उपार्जन कियायदि वे महाबल को छोड़ कर शेष छह अनगार चतुर्थभक्त (उपवास) ग्रहण करके विचरते, तो महाबल अनगार [उन्हें बिना कहे] षष्ठभक्त (बेला) ग्रहण करके विचरते / अगर महाबल के सिवाय छह अनगार षष्ठभक्त अंगीकार करके विचरते तो महाबल अनगार अष्टमभक्त (तेला) ग्रहण करके विचरते / इसी प्रकार वे अष्टमभक्त करते तो महाबल दशमभक्त करते, वे दशमभक्त करते तो महाबल द्वादशभक्त, कर लेते / (इस प्रकार अपने साथी मुनियों से छिपा कर-कपट करके महाबल अधिक तप करते थे।) तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन १४-इमेहि य वीसाएहि य कारणेहि आसेवियबहुलीकरहिं तित्थयरनामगोयं कम्म नित्तिसु, तंजहा अरिहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुए-तवस्सीसु। वल्लभया य तेसि, अभिक्ख गाणोवओगे य॥१॥ दसण-विणए आवस्सए य सोलव्वए निरइयारं / खणलव-तवच्चियाए, वेयावच्चे समाही य // 2 // अपुव्वनाणगहणे, सुयभत्ती पवयणे पभावणया। एहि कारणेहि, तित्थयरत्तं लहइ जीवो // 3 // (महाबल ने) स्त्री नामगोत्र के अतिरिक्त इन कारणों के एक बार और वार-बार सेवन करने से तीर्थकर नामगोत्र कर्म का भी उपार्जन किया / वे कारण यह हैं (1) अरिहंत (2) सिद्ध (3) प्रवचन--श्रुतज्ञान (4) गुरु-धर्मोपदेशक (4) स्थविर अर्थात् साठ वर्ष की उम्र वाले जातिस्थविर, समवायांगादि के ज्ञाता श्रुतस्थविर और बीस वर्ष की दीक्षा वाले पर्यायस्थविर, यह तीन प्रकार के स्थविर साधु (6) बहुश्रुत दूसरों की अपेक्षा अधिक श्रुत के ज्ञाता और (7) तपस्वी-इन सातों के प्रति वत्सलता धारण करना अर्थात् इनका यथोचित सत्कार-सम्मान करना, गुणोत्कीर्तन करना (8) बारंबार ज्ञान का उपयोग करना (9) दर्शन-सम्यक्त्व की विशुद्धता (10) ज्ञानादिक का विनय करना (11) छह आवश्यक करना (12) उत्तरगुणों और मूलगुणों का निरतिचार पालन करना (13) क्षणलव अर्थात् क्षण-एक लव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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