________________ सप्तम अध्ययन : रोहिणीशात सार : संक्षेप राजगृह नगर में सार्थवाह धन्य के चार पुत्र थे-धनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरक्षित / चारों विवाहित हो चुके थे। उनकी पत्नियों के नाम अनुक्रम से इस प्रकार थे--उज्झिता या उज्झिका, भोगवती, रक्षिका और रोहिणी।। धन्य सार्थवाह बहुत दूरदर्शी थे-भविष्य का विचार करने वाले / उनकी उम्र जब परिपक्व हो गई तब एक बार वे विचार करने लगे—मैं वृद्धावस्था से ग्रस्त हो गया हूँ। मेरे पश्चात् कुटुम्ब की सुव्यवस्था कैसे कायम रहेगी ? मुझे अपने जीवन-काल में ही इसकी व्यवस्था कर देनी चाहिए / इस प्रकार विचार कर धन्य ने मन ही मन एक योजना निश्चित कर ली।। योजना के अनुसार उन्होंने एक दिन अपने ज्ञातिजनों, संबंधियों, मित्रों आदि को आमंत्रित किया। भोजनादि से सब का सत्कार-सन्मान किया और तत्पश्चात् अपनी चारों पुत्रवधुओं को सब के समक्ष बुलाकर चावलों के पांच-पांच दाने देकर कहा-'मेरे माँगने पर ये पाँच दाने वापिस सौंपना।' _पहली पुत्रवधू उज्झिता ने विचार किया-बुढ़ापे में श्वसुरजी की मति मारी गई जान पड़ती है। इतना बड़ा समारोह करके यह तुच्छ भेट देने की उन्हें सूझी ! इस पर तुर्रा यह कि माँगने पर वापिस लौटा देने होंगे ! कोठार में चावलों के दानों का ढेर लगा है। माँगने पर उनमें से दे दूंगी।' ऐसा विचार करके उसने वे दाने कचरे में फेंक दिये।। दूसरी पुत्रवधू ने सोचा-'भले ही इन दानों का कुछ मूल्य न हो तथापि श्वसुरजी का यह प्रसाद है / फेंक देना उचित नहीं।' इस प्रकार विचार करके उसने वे दाने खा लिए / तीसरी ने विचार किया 'अत्यन्त व्यवहारकुशल अनुभवी और समृद्धिशाली वृद्ध श्वसुरजी ने इतने बड़े समारोह में ये दाने दिए हैं / इसमें उनका कोई विशिष्ट अभिप्राय होना चाहिए / अतएव इन दानों की सुरक्षा करना, इन्हें जतन से संभाल रखना चाहिए।' इस प्रकार सोच कर उसने उन्हें एक डिबिया में रख लिया और सदा उनकी सार-संभाल रखने लगी। ___ चौथी पुत्रवधू रोहिणी बहुत बुद्धिमती थी। वह समझ गई कि दाने देने में कोई गूढ़ रहस्य निहित है / यह दाने परीक्षा की कसौटी बन सकते हैं। उसने पांचों दाने अपने मायके (पितृगृह-पीहर) भेज दिए / उसकी सूचनानुसार मायके वालों ने उन्हें खेत में अलग वो दिया। प्रतिवर्ष वारंवार बोने से दाने बहुत हो गए-कोठार भर गया / __इस घटना को पांच वर्ष व्यतीत हो गए। तब धन्य सार्थवाह ने पुनः पूर्ववत् समारोह प्रायोजित किया / जिन्हें पहले निमंत्रित किया था उन सब को पुनः निमंत्रित किया। सब का भोजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org