________________ [193 षष्ठ अध्ययन : तुम्बक] ६-अह णं गोयमा ! से तुम्बे तंसि पढमिल्लुगंसि मट्टियालेसि तित्तंसि कुहियंसि परिसडियंसि ईसि धरणियलाओ उप्पइत्ता णं चिटुइ। तयाणंतरं च णं दोच्चं पि मट्टियालेवे जाव (तित्ते कुहिए परिसडिए ईसि धरणियलाओ) उप्पइत्ता गं चिट्ठइ। एवं खलु एएणं उवाएणं तेसु अट्ठसु मट्टियालेवेसु जाव विमुक्कबंधणे अहे धरणियलमइवइत्ता उप्पि सलिलतलपट्ठाणे भवइ / अब हे गौतम ! उस तुम्बे का पहला (ऊपर का) मिट्टी का लेप गीला हो जाय, गल जाय और परिशटित (नष्ट) हो जाय तो वह तुम्बा पृथ्वीतल से कुछ ऊपर आकर ठहरता है। तदनन्तर दूसरा मृतिकालेप गीला हो जाय, गल जाय, और हट जाय तो तुम्बा कुछ और ऊपर आ जाता है। इस प्रकार, इस उपाय से उन आठों मृतिकालेपों के गीले हो जाने पर यावत् हट जाने पर तुम्बा निर्लेप, बंधनमुक्त होकर धरणीतल से ऊपर जल की सतह पर आकर स्थित हो जाता है। ७-एवामेव गोयमा ! जीवा पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादसण-सल्लवेरमणेणं अणुपुग्वेणं अट्टकम्मपगडीओ खवेत्ता गगणतलमुप्पइत्ता उप्पि लोयग्गपइट्ठाणा भवंति / एवं खलु गोयमा ! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति / इसी प्रकार, हे गौतम ! प्राणातिपातविरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविरमण से अर्थात् अठारह पापों के त्याग से जीव क्रमश: आठ कर्मप्रकृतियों का क्षय करके ऊपर आकाशतल की ओर उड़ कर लोकाग्र भाग में स्थित हो जाते हैं / इस प्रकार हे गौतम ! जीव शीघ्र लघुत्व को प्राप्त करते हैं। उपसंहार ८-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं छट्ठस्स नायज्शयणस्स अयमढे पन्नत्ते त्ति बेमि। श्री सुधर्मा स्वामी अध्ययन का उपसंहार करते हुए कहते हैं इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने छठे ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है / वही मैं तुमसे कहता हूँ। // छठा अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org