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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात ] [93 पंचोला छह उपवास . सात उपवास पाठ उपवास नौ उपवास दस उपवास ग्यारह उपवास बारह उपवास तेरह उपवास चौदह उपवास पंद्रह उपवास सोलह उपवास ir norr mm in in n mm | WwWww.w.w.wec NYMmm Mr Yor m mm 34 407 73 480 जिस मास में जितने दिन कम हैं, उसमें अगले मास में से उतने दिन अधिक समझ लेने चाहिए। इसी प्रकार जिस मास में अधिक हैं, उसके दिन अगले मास में सम्मिलित कर देने चाहिए। १९९---तए णं से मेहे अणगारे पढमं मासं चउत्थं च उत्थेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणेणं अवाउडएणं / दोच्चं मासं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रति वीरासणेणं अवाउडएणं / तच्चं मासं अट्ठमं-अट्ठमेण अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणेणं उवाउडएणं। चउत्थं मासं दसमंदसमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति बीरासणेणं अवाउडएणं / पंचमं मासं दुवालसमंदुवालसमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणेणं अवाउडएणं / एवं खलु एएणं अभिलावेणं छठे चोद्दसमंचोद्दसमेणं, सत्तमे सोलसमंसोलसमेणं, अढमे अट्ठारसमं अट्ठार. समेणं, नवमे वीसतिमंवीसतिमेणं, दसमे बावोसइमंबावीसइमेणं, एक्कारसमे चउवीसइमंचउवीसइमेणं, बारसमे छन्वीसइमंछब्बीसइमेणं, तेरसमे अट्ठावीसइमंअट्ठावीसइमेणं, चोद्दसमे तीसइमंतीसइमेणं, पंचदसमे बत्तीसइमबत्तीसइमेणं, सोलसमे मासे चउत्तीसइमंचउत्तीसइमेणं अणिक्खित्तणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुएणं सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे राई वीरासणेण य अवाउडएण य / तत्पश्चात् मेघ अनगार पहले महीने में निरन्तर चतुर्थभक्त अर्थात् एकान्तर उपवास की तपस्या के साथ विचरने लगे। दिन में उत्कट (गोदोहन) आसन से रहते और आतापना लेने की भूमि में सूर्य के सन्मुख अातापना लेते / रात्रि में प्रावरण (वस्त्र) से रहित होकर वीरासन से स्थित रहते थे। इसी प्रकार दूसरे महीने निरन्तर षष्ठभक्त तप-बेला, तीसरे महीने अष्टमभक्त (तेला) तथा चौथे मास में दशमभक्त (चौला) तप करते हुए विचरने लगे। दिन में उत्कट प्रासन से स्थित रहते, सूर्य के सामने अातापना भूमि में प्रातापना लेते और रात्रि में प्रावरण रहित होकर वीरासन से रहते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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