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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात ] [91 तत्पश्चात् उन मेघ मुनि ने श्रमण भगवान् महावीर के निकट रह कर तथा प्रकार के स्थविर मुनियों से सामायिक से प्रारम्भ करके ग्यारह अंगशास्त्रों का अध्ययन किया। अध्ययन करके बहुत से उपवास, बेला, तेला, चौला, पंचौला आदि से तथा अर्धमासखमण एवं मासखमण आदि तपस्या से आत्मा को भावित करते हुए वे विचरने लगे। विहार और प्रतिमावहन १९४–तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ / पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ / तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर से, गुणसिलक चैत्य से निकले / निकल कर बाहर जनपदों में विहार करने लगे---विचरने लगे। १९५-तए णं से मेहे अणगारे अन्नया कयाइ समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी—'इच्छामि णं भंते ! तुन्भेहि अन्भणुनाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।' 'अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह / ' तत्पश्चात् उन मेघ अनगार ने किसी अन्य समय श्रमण भगवान् महावीर की वन्दना की, नमस्कार किया / वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार कहा—'भगवन् ! मैं आपकी अनुमति पाकर एक मास की मर्यादा वाली भिक्षुप्रतिमा को अंगीकार करके विचरने की इच्छा करता हूँ।' भगवान् ने कहा-'देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसे सुख उपजे वैसा करो। प्रतिबन्ध, अर्थात् इच्छित कार्य का विधात न करोविलम्ब न करो।' १९६-तए णं से मेहे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुनाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उपसंपज्जिता णं विहरइ। मासियं भिक्खुपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं सम्मं कारणं फासेइ, पालेइ, सोहेइ, तीरेइ, किट्टेइ, सम्मं काएण फासित्ता पालित्ता सोहेत्ता तोरेत्ता किट्टेत्ता पुणर्राव समणं भगवं महाबोरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर द्वारा अनुमति पाए हुए मेघ अनगार एक मास की भिक्ष. प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे / एक मास की भिक्षुप्रतिमा को यथासूत्र-सूत्र के अनुसार, कल्प (आचार) के अनुसार, मार्ग (ज्ञानादि मार्ग या क्षायोपशमिक भाव) के अनुसार सम्यक प्रकार से काय से ग्रहण किया, निरन्तर सावधान रहकर उसका पालन किया, पारणा के दिन गुरु को देकर शेष बचा भोजन करके शोभित किया, अथवा अतिचारों का निवारण करके शोधन किया, प्रतिमा का काल पूर्ण हो जाने पर भी किंचित् काल अधिक प्रतिमा में रहकर तीर्ण किया, पारणा के दिन प्रतिमा सम्बन्धी कार्यों का कथन करके कीर्तन किया। इस प्रकार समीचीन रूप से काया से स्पर्श करके, पालन करके, शोभित या शोधित करके, तीर्ण करके एवं कीर्तन करके पुनः श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया / वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहा-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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