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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात ] [ 27 चक्कवाय-कलहंस-उस्सुयकरे संपत्ते पाउसम्मि काले, व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ताओ, कि ते? __ वरपायपत्त-णेउर-मणिमेहल-हार-रइयउचियकडग-खुड्डय-विचित्तवरवलयर्थभियभुयाओ, कुडलउज्जोयियाणणाओ, रयणभूसियंगाओ, नासानीसासवायवोझं चक्खुहरं वण्णफरिससंजुत्तं हयलालापेलवाइरेयं धवलकणयचियन्तकम्मं आगासफलिहसरिसप्पमं अंसुअं पवरपरिहियाओ, दुगुल्लसुकुमालउत्तरिज्जाओ, सव्वोउयसुरभिकुसुमपवरमल्लसोभितसिराओ, कालागरु-घवधूवियाओ, सिरिसमाणवेसाओ, सेयणगगंधवहत्थिरयणं दुरुढाओ समाणीओ, सकोरिटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चंदप्पभ-वइर-वेरुलिय-विमलदंडसंख-कुद-दगरय-अमयमहिय-फेणपुंजसंनिगासचउचामर-वालवीजियंगोओ, सेणिएणं रन्ना सद्धि हत्थिखंधवरगएणं, पिठ्ठओ समणुगच्छमाणीओ चउरंगिणीए सेणाए, महया हयाणीएणं, गयाणीएणं रहाणीएणं, पायत्ताणीएणं, सविड्ढीए सव्वज्जुईए जाव [सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सन्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सवपुप्फ-गंध-मल्लालंकारेण सव्वतुडिय-सद्द-सणिणाएणं, महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेण महया समुदएण महया वरतुडियजमगसमग-८पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुदुहि] निग्घोसणादियरवेणं रायगिहं नगरं सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आसित्तसित्तसुचियसंमज्जिओवलितं जाव पंचवण्ण-सरस-सुरभिमुक्क-पुष्फयुजोवयारकलियं कालागुरु-पवरकुदुरुक्क-तुरुक्कधूव-डज्झंत-सुरभिमघमघंत-गंधुद्ध याभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं अवलोएमाणीओ, नागरजणेणं अभिणंदिज्जमाणीओ, गुच्छ-लया-रुक्ख-गुम्म-वल्लि-गुच्छ-ओच्छाइयं सुरम्मं वेभारगिरिकडगपायमूलं सवओ समंता आहिंडेमाणीओ आहिंडेमाणीओ दोहलं विणियंति / तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुवगएसु जाव दोहलं विणिज्जामि। जो माताएँ अपने अकाल-मेघ के दोहद को पूर्ण करती हैं, वे माताएँ धन्य हैं, वे पुण्यवती हैं, वे कृतार्थ हैं / उन्होंने पूर्व जन्म में पुण्य का उपार्जन किया है, वे कृतलक्षण हैं, अर्थात् उनके शरीर के लक्षण सफल हैं। उनका वैभव सफल है, उन्हें मनुष्य संबंधी जन्म और जीवन का फल प्राप्त हुना है, अर्थात् उनका जन्म और जीवन सफल है। आकाश में मेघ उत्पन्न होने पर, क्रमशः वृद्धि को प्राप्त होने पर, उन्नति को प्राप्त होने पर, बरसने की तैयारी होने पर, गर्जना युक्त होने पर, विद्युत् से युक्त होने पर, छोटी-छोटी बरसती हुई बूदों से युक्त होने पर, मंद-मंद ध्वनि से युक्त होने पर, अग्नि जला कर शुद्ध की हुई चांदी के पतरे के समान, अङ्क नामक रत्न, शंख, चन्द्रमा, कुन्द पुष्प और चावल के पाटे के समान शुक्ल वर्ण वाले, चिकुर नामक रंग, हरताल के टुकड़े, चम्पा के फूल, सन के फूल (अथवा सुवर्ण), कोरंट-पुष्प, सरसों के फूल और कमल के रज के समान पीत वर्ण वाले, __ लाख के रस, सरस रक्तवर्ण किशुक के पुष्प, जासु के पुष्प, लाल रंग के बंधुजीवक के पुष्प, उत्तम जाति के हिंगल, सरस ककु, बकरा और खरगोश के रक्त और इन्द्रगोप (सावन की डोकरी) के समान लाल वर्ण वाले, मयूर, नीलम मणि, नीली गुलिका (गोली), तोते के पंख, चाष पक्षी के पंख, भ्रमर के पंख, सासक नामक वृक्ष या प्रियंगुलता, नीलकमलों के समूह ताजा शिरीष-कुसुम और घास के समान नील वर्ण वाले, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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