________________ 26] [ज्ञाताधर्मकथा ४२-तए णं धारिणी देवी सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमटु सोच्चा णिसम्म हट्ठ जाव' हियया तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ / पडिच्छित्ता जेणेव सए वासघरे तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता व्हाया कयबलिकम्मा जाब विपुलाहिं जाब विहरइ। तत्पश्चात् धारिणी देवी, श्रेणिक राजा का यह कथन सुनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट-तुष्ट हुई, यावत् आनन्दित हृदय हुई / उसने उस स्वप्न को सम्यक् प्रकार से अंगीकार किया। अंगीकार करके अपने निवासगृह में आई। आकर स्नान करके तथा बलिकर्म अर्थात् कुलदेवता की पूजा करके यावत् विपुल भोग भोगती हुई विचरने लगी। धारिणी देवी का दोहद ४३–तए णं तोसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गम्भस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउन्भवित्था तत्पश्चात दो मास व्यतीत हो जाने पर जब तीसरा मास चल रहा था तब उस गर्भ के दोहदकाल (दोहले का समय-गभिणो स्त्री की इच्छा विशेष का समय) के अवसर पर धारिणी देवी को इस प्रकार का अकाल-मेघ का दोहद उत्पन्न हुा- . ४४–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, सपुन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ कयपुन्नाओ, कयलक्खणाओ, कयविहवाओ, सुलद्धे तासि माणुस्सए जम्म-जीवियफले, जाओ गं मेहेसु अन्भुग्गएसु अब्भुज्जएसु अन्भुन्नएसु अब्भुटिएसु सगज्जिएसु सविज्जुएसु सफुसिएसु सथणिएसु धंतधोतरुप्पपट-अंक-संख-चंद-कूद-सालि-पिटरासि-समप्पभेस चिउर-हरियालभेय-चंपग-सण-- कोरंट-सरिसय-पउमरय-समप्पभेसु लक्खारस-सरसरकिसुय-जासुमण-रत्तबंधुजीवग-जातिहिंगुलय-सरसकुकुम-उरन्भ-ससरुहिरइंदगोवगसमप्पभेसु, बरहिण-नीलगुलिय-सुग-चास-पिच्छ-भिगपत्त-सासग-नीलुप्पलनियर-नवसिरीस-कुसुम-णवसद्दलसमप्पभेसु, जच्चजण-भिगभेय-रिट्ठग-भभरावलि-गवल-गुलिय-कज्जल-समप्पभेसु, फुरतविज्जयसगज्जिएसु वायवस-विपुलगगणचवलपरिसक्किरेसु निम्मलवर-वारिधारापगलियपयंडमारुयसमाहय-समोत्थरंत उवरि उवरि तुरियवासं पवासिएसु, धारापहकरणिवायनिव्वावियमेइणितले हरियगणकंचुए, पल्लवियपायवगणेसु, वल्लिवियाणेसु पसरिएसु, उन्नएसु सोभग्गमुवागएसु, नगेसु नएसु वा, वेभारगिरिप्पवायतड-कडगविमुक्केसु उज्झरेसु, तुरियपहावियपलोट्टफेणाउलं सकलुसं जलं वहंतोसु गिरिनदीसु, सज्ज-ज्जुण-नीव-कुडय-कंदल-सिलिधलिएसु उववणेसु, मेह-रसिय-हतुट्ठचिट्ठिय-हरिसवसपमुक्ककंठकेकारवं मुयंतेसु बरहिणेसु, उउ-बस-मयजणिय-तरुणसहयरि-पणच्चिएसुसु, नवसुरभिसिलिध-कुडयकंदल-कलंबगंधद्धणि मुयंतेसु उववणेसु, परहुयरुयरिभितसंकुलेसु उद्दायतरत्तइंदगोवयथोवयकारुनविलवितेसु ओणयतणमंडिएसु दद्द रपयंपिएसु संपिडिय-दरिय-भमर-महुकरिपहकरपरिलित-मत्तछप्पय-कुसुमा-सवलोलमधुरगुजंतदेसभाएसु उववणेसु, परिसामियचंद-सूर-गहगणपणठ्ठनक्खत्त-तारगपहे इंदाउहबद्धचिंधपट्टसि अंबरतले उड्डीणबलागयंतिसोभंतमेहविदे, कारंडग१. प्र. अ. सूत्र 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org