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________________ 24] [ ज्ञाताधर्मकथा 'हे स्वामिन् ! हमारे स्वप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न और तीस महास्वप्न–कुल मिलाकर 72 स्वप्न हमने देखे हैं / अरिहंत की माता और चक्रवर्ती की माता, जब अरिहन्त और चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं तो तीस महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न देखकर जागती हैं / वे इस प्रकार हैं (1) हाथी (2) वृषभ (3) सिंह (4) अभिषेक (5) पुष्पों की माला (6) चन्द्र (7) सूर्य (8) ध्वजा (9) पूर्ण कुभ (10) पद्मयुक्त सरोवर (11) क्षीरसागर (12) विमान अथवा भवन (13) रत्नों की राशि और (14) अग्नि / विवेचन--तीर्थंकर प्राय: देवलोक से च्यवन करके मनुष्यलोक में अवतरित होते हैं / कोईकोई कभी रत्नप्रभापृथ्वी से निकल कर भी जन्म लेते हैं। स्वर्ग से आकर जन्म लेने वाले तीर्थकर की माता को स्वप्न में विमान दिखाई देता है और रत्नप्रभापृथ्वी से प्राकर जन्मने वाले तीर्थकर की माता भवन देखती है। इसी कारण बारहवें स्वप्न में 'विमान अथवा भवन' ऐसा विकल्प बतलाया गया है। ३७-वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसि गम्भं वक्कममाणंसि एएसि चोदसण्हं महासुमिणाणं अन्नतरे सत्त महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झन्ति / बलदेवमायरो वा बलदेवसि-गब्भं वक्कममाणंसि एएस चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णयरे चत्तारि महासुमिणे पसित्ता णं पडिबुज्झंति / मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गम्भं वक्कममाणंसि एएसि चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरं एगं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुज्झन्ति / जब वासुदेव गर्भ में आते हैं तो वासुदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में से किन्हीं भी सात महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं / जब वलदेव गर्भ में आते हैं तो बलदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में से किन्हीं चार महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं। जब मांडलिक राजा गर्भ में आता है तो मांडलिक राजा की माता इन चौदह महास्वप्नों में से कोई एक महास्वप्न देखकर जागृत होती है। ३८–इमे य णं सामी ! धारिणीए देवीए एगे महासुमिणे दिठे। तं उराले गं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिठे / जाव' आरोग्गतुठ्ठिदोहाउकल्लाणमंगल्लकारए णं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिठे / अत्थलाभो सामी ! सोक्खलाभो सामी ! भोगलाभो सामी ! पुत्तलाभो सामी! रज्जलाभो सामी ! एवं खलु सामी ! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं जाव दारगं फ्याहिसि / से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमिते जोवणगमणुपत्ते सूरे वोरे विक्कते वित्थिन्नविउलबल-वाहणे रज्जवती राया भविस्सइ, अणगारे वा भावियप्या / तं उराले णं सामी ! धारणीए देवीए सुमिणे दिढे जाव' आरोग्गतुठ्ठि जाव दि→ त्ति कटु भुज्जो भुज्जो अणुबूहेंति / स्वामिन् ! धारिणी देवी ने इन महास्वप्नों में से एक महास्वप्न देखा है; अतएव स्वामिन् ! धारिणी देवी ने उदार स्वप्न देखा है, यावत् प्रारोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याण और मंगलकारी, स्वामिन् ! धारिणी देवी ने स्वप्न देखा है / स्वामिन् ! इससे आपको अर्थलाभ होगा। स्वामिन् ! सुख का लाभ होगा / स्वामिन् ! भोग का लाभ होगा, पुत्र का तथा राज्य का लाभ होगा। इस प्रकार स्वामिन् ! धारिणी देवी पूरे नौ मास व्यतीत होने पर यावत् पुत्र को जन्म देगी। वह पुत्र बाल-वय को 1.2. प्र. अ. सूत्र 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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