________________ 360 [भ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [4 प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादि-विस्रसाबन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है ? [4 उ.] गौतम ! वह देशबन्ध है, सर्वबन्ध नहीं / 5. एवं अधम्मस्थिकायअन्नमनप्रणादीयवीससाबंधे वि, एवं प्रागासस्थिकायअन्नमनप्रणादीयबोससाबंधे वि। [5] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के अन्योन्य-अनादि-विस्रसाबन्ध एवं आकाशास्तिकाय के अन्योन्य-अनादि-विस्रसाबन्ध के विषय में भी समझ लेना चाहिए। (अर्थात् --ये भी देशबन्ध हैं, सर्वबन्ध नहीं।) 6. धम्मस्थिकायअन्नमन्नप्रणाईयवीससाबंधे णं भंते ! कालमो केवच्चिर होइ? गोयमा ! सम्वद्ध। [6 प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादि-विस्रसाबन्ध कितने काल तक रहता है ? [6 उ.] गौतम ! सर्वाद्धा (सर्वकाल = सर्वदा) रहता है। 7. एवं अधम्मस्थिकाए, एवं प्रागासस्थिकाये / [7] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादि-विससाबन्ध एवं नाकाशास्तिकाय का अन्योन्य-अनादि-विस्रसाबन्ध भी सर्वकाल रहता है / 8. सादीयवीससाबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-बंधणपच्चइए भायणपच्चइए परिणामपच्चइए। [8 प्र.] भगवन् ! सादिक-विस्रसाबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [8 उ.] गौतम ! वह तीन प्रकार का कहा गया है। जैसे—(१) बन्धन-प्रत्ययिक, (2) भाजनप्रत्ययिक और (3) परिणामप्रत्ययिक / 6. से कि तं बंधणपच्चइए ? बंधणपच्चइए, जं णं परमाणुपुग्गला दुपएसिय-तिपएसिय-जाव-दसपएसिय-संखेज्जपएसियअसंखेज्जपएसिय-अणंतपएसियाणं खंधाणं वेमायनिद्धयाए वेमायलुक्खयाए वेमायनिद्ध-लुक्खयाए बंधणपच्चइएणं बंधे समुष्पज्ज इ जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं / से तं बंधणपच्चइए / [9 प्र.] भगवन् ! बन्धन-प्रत्ययिक-सादि-विस्रसाबन्ध किसे कहते हैं ? [6 उ.] गौतम ! परमाणु, द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक, यावत् दशप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक पुद्गल-स्कन्धों का विमात्रा (विषममात्रा) में स्निग्धता से, विमात्रा में रूक्षता से तथा विमात्रा में स्निग्धता-रूक्षता से वन्धन-प्रत्ययिक बन्ध समुत्पन्न होता है। वह जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टत: असंख्येय काल तक रहता है / यह हुमा बन्धन-प्रत्यायिक सादि-विस्रसाबन्ध का स्वरूप / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org