________________ 296 ] / व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 'बहुबीज वाले फलों' तक कहना चाहिए। इस प्रकार यह बहुबीजकों का वर्णन हुा / और (इसके साथ ही) असंख्यात जीव वाले वृक्षों का वर्णन भी पूर्ण हुआ। 5. से कि तं प्रणतजीविया? श्रणंतजीविया प्रणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा–पालुए मूलए सिंगबेरे एवं जहा सत्तमसए (स० 7 उ० 3 सु० 5) जाव सीउंढी मुसुढी, जे यावन्ने तहप्पकारा / से तं प्रणतजीविया / [5 प्र.] भगवन् ! अनन्त जीव वाले वृक्ष कौन-से हैं ? [5 उ.] गौतम ! अनन्त जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए हैं। जैसे—आलू, मूला, शृगबेर (अदरख) ग्रादि / इस प्रकार भगवतीसूत्र के सप्तम शतक के तृतीय उद्देशक में कहे अनुसार, यावत् 'सिउंढी, मुसुढी' तक जानना चाहिए। ये और इनके अतिरिक्त जितने भी इस प्रकार के अन्य वृक्ष हैं, उन्हें भी (अनन्त जीव वाले) जान लेना चाहिए। यह हुमा उन अनन्त जीव वाले वृक्षों का कथन / विवेचन--संख्यातजीविक, असंख्यातजीविक और अनन्तजीविक वृक्षों का निरूपण-प्रस्तुत तृतीय उद्देशक के प्रारम्भिक पांच सूत्रों में वृक्षों के तीन प्रकार का और फिर उनमें से प्रत्येक प्रकार के वृक्षों का परिचय दिया गया है। संख्यातजीविक, असंख्यातजोविक और अनन्तजीविक का विश्लेषण-जिन में संख्यात जीव हों उन्हें संख्यातजीविक कहते हैं, प्रज्ञापना में दो गाथाओं द्वारा नालिके री तक, इनके नामों का उल्लेख किया गया है ताल तमाले तेतलि, साले य सारकल्लाणे / सरले जायइ केयइ कलि तह चम्मरुक्खे य // 1 // भुयरुवखे हिगुरुक्खे य लवंगरुक्खे य होइ बोद्धव्वे / पूयफली खज्जूरी बोधवा नालियेरो य // 2 // अर्थात्-ताड़, तमाल, तेतलि (इमली), साल, सारकल्याण, सरल, जाई, केतकी, कदली (केला) तथा चर्मवृक्ष, भुर्जवृक्ष, हिंगुवृक्ष और लवंगवृक्ष, पूगफली (पूगीफल-सुपारी), खजूर, और नारियल के वृक्ष संख्यातजीविक समझने चाहिए। असंख्यात जीव वाले (असंख्यातजीविक) मुख्यतया दो प्रकार के हैं ---एकास्थिक और बहुबीजक / जिन फलों में एक ही बीज (या गुठली) हो वे एकास्थिक और जिन फलों में बहुत-से बीज हों, वे बहुबीजक-अनेकास्थिक कहलाते है / प्रज्ञापनासूत्र में एकास्थिक के कुछ नाम इस प्रकार दिये गए हैं 'निबंब-जम्बुकोसंच साल अंकोल्लपीलु सल्लूया। सल्लइमोयइमालुय बउलपलासे करंजे य॥१॥ अर्थात्-नीम, आम, जामुन, कोशाम्ब, साल, अंकोल्ल, पीलू, सल्लूक, सल्लकी, मोदकी, मालुक, बकुल, पलाश और करंज इत्यादि फल एकास्थिक जानने चाहिए / बहुबीजक फलों के प्रज्ञापनासूत्र में उल्लिखित नाम इस प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org