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________________ 272] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [105-1 प्र.] भगवन् ! सामायिकचारित्रलब्धिमान् जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [105-1 उ.] गौतम! वे ज्ञानी होते हैं। उनमें केवलज्ञान के सिवाय चार ज्ञान भजना से होते हैं। [2] तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई तिण्णि य अण्णाणाई भयणाए। [105-2] सामायिकचारित्रलब्धिरहित जीवों में पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। 106. एवं जहा सामाइयचरित्तद्धिया अलधिया य भणिया एवं जाव अहक्खायचरित्तलधिया अलधिया य भारिणयव्वा, नवरं अहक्खायचरित्तलधियाणं पंच नाणाई भयणाए / [106] इसी प्रकार यावत् यथाख्यातचारित्रलब्धि वाले जीवों तक का कथन सामायिकचारित्रलब्धियुक्त जीवों के समान करना चाहिए। इतना विशेष है कि यथाख्यातचारित्रलब्धिमान् जीवों में पांच ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। इसी तरह यावत् यथाख्यातचारित्रलब्धिरहित जीवों तक का कथन सामायिकचारित्रलब्धिरहित जीवों के समान करना चाहिए / 107. [1] चरित्ताचरित्तल द्धिया णं भंते ! जीवा कि नाणी, अण्णाणी? गोयमा! नाणी, नो अण्णाणी / प्रत्यंगतिया दुण्णाणी, अत्थेगतिया तिपणाणी / जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी य, सुयनाणी य / जे तिनाणी ते प्राभि० सुतना० प्रोहिनाणी य। [107-1 प्र.] भगवन् ! चारित्राचारित्र (देशचारित्र) लब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं ? [107-1 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कई दो ज्ञान वाले, कई तीन ज्ञान वाले होते हैं। जो दो ज्ञान बाले होते हैं, वे आभितिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं, जो तीन ज्ञान वाले होते हैं, वे आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी होते हैं। [2] तस्स अलद्धीयाण पंच नाणाई, तिणि अण्णाणाई भयणाए / [107-2] चारित्राचारित्रलब्धिरहित जीवों में पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। 108. [1] दाणलद्धियाणं पंच नाणाई, तिणि अण्णाणाई भयणाए। [108-1] दानलब्धिमान् जीवों में पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। [2] तस्स अलद्धीया गं० पुच्छा। गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी नियमा। एगनाणी-केवलनाणी। [108-2 प्र.] भगवन् ! दानलब्धिरहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [108-2 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें नियम से एकमात्र केवलज्ञान होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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