________________ 152] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [24 प्र.] भगवन् ! अज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? [24 उ.] गौतम ! अज्ञान तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है--(१) मतिअज्ञान, (2) श्रुत-अज्ञान और (3) विभंगज्ञान / 25. से कि तं मइअण्णाणे ? मइअण्णाणे चउबिहे पणत्ते, तं जहा--उग्गहो जाव धारणा। [25 प्र. भगवन् ! मति-अज्ञान कितने प्रकार का है ? [25 उ.] गौतम ! मति-अज्ञान चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है--- (1) अवग्रह, (2) ईहा, (3) अवाय और (4) धारणा / 26. [1] से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा----प्रत्थोग्गहे य बंजणोग्गहे य / [26-1 प्र.] भगवन् ! वह अवग्रह कितने प्रकार का है ? [26-1 उ.] गौतम ! अवग्रह दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है-अर्थावग्रह और व्यञ्जनावग्रह। [2] एवं जहेव प्रामिणबोहियनाणं तहेव, नवरं एगट्टियवज्ज जाव नोइंदियधारणा, से तं धारणा / से तं मतिअण्णाणे / [26-2] जिस प्रकार (मन्दीसूत्र में) प्राभिनिवोधिकज्ञान के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी जान लेना चाहिए / विशेष इतना ही है कि वहाँ प्राभिनिबोधिकज्ञान के प्रकरण में अवग्रह आदि के एकाथिक (समानार्थक) शब्द कहे हैं, उन्हें छोड़कर यावत्---'नोइन्द्रिय-धारणा है', यह हुआ धारणा का स्वरूप यहाँ तक कहना चाहिए / यह हुआ मति-अज्ञान का स्वरूप / 27. से कि तं सुयप्रणाणे? सुतअण्णाणे जं इमं अण्णाणिएहि मिच्छद्दिट्टिएहि जहा नंदीए जाव चत्तारि वेदा संगोवंगा। से तं सुयमन्नाणे। [27 प्र.] भगवन् ! श्रुत-अज्ञान किस प्रकार का कहा गया है ? [27 उ.] गौतम ! जिस प्रकार नन्दीसूत्र में कहा गया है-~-'जो अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा प्ररूपित है'; इत्यादि यावत्-सांगोपांग चार वेद तक श्रुत-अज्ञान है / इस प्रकार श्रुत-अज्ञान का वर्णन पूर्ण हुआ। 28. से कि तं विभंगनाणे? विभंगनाणे अणेगविहे पण्णते, तं जहा--गामसंठिए नगरसंठिए जाव संनिवेससंठिए दीवसंठिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org