________________ 246 [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [4 प्र.] भगवन् ! मण्डूकजाति-आशीविष का कितना विषय है ? [4 उ.] गौतम ! मण्डकजाति-पाशीविष अपने विष से भरतक्षेत्र-प्रमाण शरीर को विदलित करने एवं व्याप्त करने में समर्थ है / शेष सब पूर्ववत् जानना, यावत् (यह उसका सामर्थ्य मात्र है, किन्तु सम्प्राप्ति से उसने कभी ऐसा किया नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं / 5. एवं उरगजातिप्रासीविसस्स वि, नवरं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिगयं / सेसं तं चेव, नो चेव जाव करेस्संति वा 3 / [5] इसी प्रकार उरगजाति-प्राशीविष के सम्बन्ध में जानना चाहिए / इतना विशेष है कि वह जम्बूद्वीप-प्रमाण शरीर को विष से युक्त एवं व्याप्त करने में समर्थ है। यह उसका सामर्थ्यमात्र है, किन्तु सम्प्राप्ति से उसने ऐसा कभी किया नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। 6. मणुस्सजातिप्रासीविसस्स वि एवं चेच, नवरं समयखेत्तप्पमाणमेतं बोंदि विसेणं विसपरिगयं / सेसं तं चेव जाव करेस्संति वा 4 // [6] इसी प्रकार मनुष्यजाति-पाशीविष के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। विशेष इतना ही है कि वह समयक्षेत्र (मनुष्यक्षेत्र= ढाई द्वीप) प्रमाण शरीर को विष से विदलित एवं व्याप्त कर सकता है, किन्तु यह उसका सामर्थ्य मात्र है, सम्प्राप्ति द्वारा कभी ऐसा किया नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। 7. जदि कम्मआसोविसे कि नेरइयकम्मप्रासोविसे, तिरिक्खजोणियकम्मश्रासोविसे, मणुस्सकम्मप्रासोविसे, देवकम्मासीविसे ? गोयमा! नो नेरइयकम्मासीविसे, तिरिक्खजोगियकम्मासीविसे वि, मणस्सकम्मासीविसे वि, देवकम्मासीविसे वि। {7 प्र.] भगवन् ! यदि कर्म-आशीविष है तो क्या वह नैरयिक-कर्म-पाशीविष है, या तिर्यञ्चयोनिक-कर्म-ग्राशीविष है अथवा मनुष्य-कर्म-आशीविष है या देव-कर्म-प्राशीविष है ? [7 उ.] गौतम ! नैरयिक-कर्म-प्राशीविष नहीं, किन्तु तिर्यञ्चयोनिक-कर्म-प्राशीविष है, मनुष्य-कर्म-पाशीविष है और देव-कर्म-आशीविष है / 8. जदि तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे कि एगिदियतिरिक्खजोणियकम्मासोविसे ? जाव पंचिदियतिरिक्खिजोणियकम्मासीविसे ? गोयमा! नो एगिदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे जाव नो चतुरिदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, पंचिदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे / [प्र.] भगवन् ! यदि तिर्यञ्चयोनिक-कर्म-ग्राशीविष है, तो क्या एकेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिककर्म-आशीविष है अथवा पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक-कर्म-प्राशीविष है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org