________________ 222] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] जे पज्जत्तासुहमपुढवि० एवं चेव / [42-2] जो पुद्गल पर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग परिणत हैं, वे भी इसी प्रकार जानने चाहिए / 43. एवं जहाऽऽणुपुवीए जस्स जति इंदियाणि तस्स तति भाणियव्याणि जाव जे पज्जत्तासम्वसिद्धप्रणुत्तर जाव देवचिदियसोइंदिय जाब फासिदियपयोगपरिणया वि ते वण्णो कालवण्णपरिणया जाव आघयसंठागपरिणया वि / दंडगा / [43] इसी प्रकार अनुक्रम से पालापक कहने चाहिए। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियां हों उतनी कहनी चाहिए। यावत् जो पुद्गल पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक देवपंचेन्द्रिय-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण के रूप में, यावत् संस्थान से प्रायत संस्थान के रूप में परिणत हैं। नौवाँ दण्डक 44. [1] जे प्रपज्जत्तासुहमपुढविकाइयएगिदियानोरालिय-तेया-कम्मासरीरफासिदियपयोगपरिणया ते वरुण ग्रो कालवण्णपरिणया वि जाव प्रायतसंठाणप० वि / [44-1] जो पुद्गल अपर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-ग्रौदारिक-तैजस-कार्मणशरीरस्पर्शन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण के रूप में भी परिणत हैं, यावत् संस्थान से प्रायतसंस्थान के रूप में परिणत हैं / [2] जे पज्जत्तासुहुभपुढवि० एवं चेव / [44-2] जो पुद्गल पर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रौदारिक-तैजस-कार्मणशरोरस्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं, वे भी इसी तरह (पूर्ववत्) जानने चाहिए। 45. एवं जहाऽऽणुपुवीए जस्स जति सरीराणि इंदियाणि य तस्स तति भाणियवाणि जाव जे पज्जतासवदसिद्ध प्रणुत्त रोववाइया जाव देवपंचिदिय-वेउब्धिय-तेया-कम्मासोइंदिय जाव फासिदियपयोगपरि० ते वणनो कालवण्णपरि० जाव प्राययसंठाणपरिणया वि / एवं एए नव दंडगा। [45] इसी प्रकार अनुक्रम से सभी आलापक कहने चाहिए / विशेषतया जिसके जितने शरीर और इन्द्रियां हों, उसके उतने शरीर और उतनी इन्द्रियों का कथन करना चाहिए; यावत् जो पुद्गल पर्याप्तकसर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिकदेव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय-तैजस-कार्मण-शरीर तथा श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण के रूप में यावत् संस्थान से प्रायत संस्थान के रूपों में परिणत हैं। इस प्रकार ये नौ दण्डक पूर्ण हुए। विवेचन-नौ दण्डकों द्वारा प्रयोग-परिणत पुदगलों का निरूपण---प्रस्तुत 42 सूत्रों (सू. 4 से 45 तक) नौ दण्डकों की दृष्टि से प्रयोग-परिणत पुद्गलों का निरूपण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org