________________ 212] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रं [13 प्र.] भगवन् ! भवनवासी-देवपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? _[13 उ] वै (भवनवासीदेवसम्बन्धी-प्रयोग-परिणत पुद्गल) दस प्रकार के कहे गए हैं / यथा-असुरकुमार-देव-प्रयोग-परिणत पुद्गल यावत् स्तनितकुमार-देव-प्रयोग-परिणत पुद्गल / 14. एवं एतेणं प्रभिलावेणं अट्ठविहा वाणमंतरा पिसाया जाव गंधव्या। [14] इसी प्रकार इसी अभिलाप (पाठ) से आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देव (प्रयोग-परिणत पुद्गल) कहने चाहिए। यथा-पिशाच (वाणव्यन्तरदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गल) से यावत् गन्धर्व(वाण० देव ०-प्रयोग-परिणत पुद्गल) तक / 15. जोइसिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा—चंदविमाणजोतिसिय० जाय ताराविमाणमोतिसियदेव० / [15] (इसी प्रकार के अभिलापवत्) ज्योतिष्कदेवप्रयोग-परिणत पुद्गल भी पांच प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार–चन्द्रविमानज्योतिष्कदेव (-प्रयोग-परिणत) यावत् ताराविमान-ज्योतिष्कदेव(-प्रयोग-परिणत पुद्गल)। 16. [1] वेमाणिया दुविहा पणत्ता, तं नहा-कप्पोवग० कप्पातीतगवेमाणिय० / [16-1] वैमानिकदेव(-प्रयोग-परिणत पुद्गल) के दो प्रकार कहे गए हैं। यथा--कल्पोपपन्नक वैमानिकदेव(-प्रयोग-परिणत पुद्गल) और कल्पातीत-वैमानिकदेव (-प्रयोग-परिणत पुद्गल) / [2] कप्पोवगा दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मकप्पोषग० नाव अच्चयकप्पोवगवेमाणिया। [16-2] कल्पोपपत्रक वैमानिक देव० बारह प्रकार के कहे गए हैं / यथा-सौधर्म कल्पोपपन्नक से यावत् अच्युत कल्पोपपन्नक देव तक / (इन बारह प्रकार के वैमानिक देवों से सम्बन्धित प्रयोग-परिणत पुद्गल 12 प्रकार के होते हैं / ) [3] कप्पातीत० दुविहा पण्णता, तं जहा-वेज्जगकप्पातीतवे० अणुत्तरोववाइयकप्पातीतवे। [16-3] कल्पातीत वैमानिकदेव दो प्रकार के कहे गए हैं / यथा-वेयक-कल्पातीतवैमानिकदेव और अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव / ( इन्हीं दो प्रकार के कल्पातीत वैमानिकदेवों से सम्बन्धित प्रयोग-परिणत-पुद्गल दो प्रकार के कहने चाहिए / ) [4] गेवेज्जगकप्पातीतगा नवविहा पणत्ता, तं जहा-हेटिमहेट्ठिमगेवेज्जगकप्पातीतगा नाव उरिमउरिमगेविज्जगकप्पातीतया। [16-4] ग्रेवेयककल्पातीत वैमानिकदेवों के नौ प्रकार कहे गए हैं। यथा-अधस्तनअधस्तन (सबसे नीचे की त्रिक में नीचे का) ग्रं वेयक कल्पातीत वैमानिक देव यावत् उपरितन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org