________________ [211 अष्टम शतक : उद्देशक-१] [5] एवं एतेणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा पण्णता, तं जहा-उरपरिसप्पा य, भयपरिसप्पा य। [10-5] इसी प्रकार अभिलाप (पाठ) द्वारा परिसर्प स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियप्रयोग-परिणत पुद्गल भी दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-उरःपरिसर्प-स्थलचर-तियंञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और भुजपरिसर्प-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / [6] उरपरिसप्पा दुविहा पण्णता, तं जहा-सम्मुच्छिमा य, गम्भवक्कंतिया य / [१०-६](पूर्वोक्त चतुष्पदस्थलचर सम्बन्धी पुद्गलवत्) उर:परिसर्प (सम्बन्धी प्रयोगपरिणत पुद्गल) भी दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा—सम्मूच्छिम (उरःपरिसर्पसम्बन्धी पुद्गल) और गर्भज (उर:परिसर्प-सम्बन्धी पुद्गल)। [7] एवं भुयपरिसप्पा वि। [10-7] इसी प्रकार भुजपरिसर्प-सम्बन्धी पुद्गल के भी दो भेद समझ लेने चाहिए। [8] एवं खहचरा वि। [10-8] इसी तरह खेचर (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियसम्बन्धी पुद्गल) के भी पूर्ववत् (सम्मूच्छिम और गर्भज) दो भेद कहे गए हैं। 11. मणुस्सपंचिदियफ्योग पुच्छा / गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा--सम्मुच्छिममणुरूस० गम्भवतियमणुस्स० / [11 प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [11 उ.] गौतम ! वे (मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) दो प्रकार के कहे गए हैं / यथा-सम्मूच्छिममनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुदगल / 12. देवचिदियपयोग० पुच्छा। गोयमा ! चविहा पन्नता, तं जहा—भवणवासिदेवचिदियपयोग० एवं जाव वेमाणिया। [12 प्र.] भगवन् ! देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत-पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [12 उ.] गौतम! वे चार प्रकार के कहे गए हैं। जैसे कि-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियप्रयोग-परिणत पुद्गल, यावत् वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / .13. भवणवासिदेवपंचिदिय० पुच्छा। . गोयमा ! इसविहा पण्णसा, तं जहा -असुरकुमार० जाब थणियकुमार० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org