________________ 198] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (भगवान--) 'हे कालोदायी ! पंचास्तिकायसम्बन्धी यह बात सत्य है / मैं धर्मास्तिकाय यावत् पुद्गलास्तिकाय-पर्यन्त पंच अस्तिकाय की प्ररूपणा करता हैं। उनमें से चार अस्तिकायों को मैं अजीवकाय बतलाता हूँ 1 यावत् पूर्व कथितानुसार एक पुद्गलास्तिकाय को मैं रूपीकाय (अजीवकाय) बतलाता हूँ। 6. तए णं से कालोदाई समणं भगवं महावीरं एवं वदासी--एयंसि णं भंते ! धम्मस्थिकायसि अधम्मत्थिकार्यसि प्रागासस्थिकासि अरूविकासि अजीवकायसि चक्किया केइ आसइत्तए वा सइत्तए वा चिद्वित्तए वा निसोदित्तए वा तुट्टित्तए वा ? ___णों इण? समट्ट कालोदाई ! / एगसि णं पोग्गलत्थिकायंसि रूविकायंसि अजीवकार्यसि चक्किया केइ प्रासइत्तए वा सइत्तए वा जाय तुट्टित्तए वा। [प्र.] तब कालोदायी ने श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा---'भगवन् ! क्या धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, इन प्ररूपी अजीवकायों पर कोई बैठने, सोने, खड़े रहने, नीचे बैठने यावत् करवट बदलने, आदि क्रियाएँ करने में समर्थ है ?' [उ ] हे कालोदायिन् ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है / एक पुद्गलास्तिकाय ही रूपी अजीवकाय है, जिस पर कोई भी बैठने, सोने, या यावत् करवट बदलने, प्रादि क्रियाएँ करने में समर्थ है। 10, एयंसिणं भंते ! पोग्गलस्थिकासि रूविकासि अजीवकासि जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति ? णो इण? सम8 कालोदाई ! / [10 प्र.] भगवन् ! जीवों को पापफलविपाक से संयुक्त करने वाले (अशुभफलदायक) पापकर्म, क्या इस रूपीकाय और अजीवकाय को लगते हैं ? क्या इस रूपोकाय और अजीवकायरूप पुद्गलास्तिकाय में पापकर्म लगते हैं ? [10 उ.] कालोदायिन् ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / (अर्थात्-रूपी अजीव पुद्गलास्तिकाय को, जीवों को पापफलविपाकयुक्त करने वाले पापकर्म नहीं लगते / ) 11. एयंसि णं जीवस्थिकासि अरूविकासि जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जति? हता, कज्जति। [11 प्र.] (भगवन् ! ) क्या इस अरूपी (काय) जीवास्तिकाय में जीवों को पापफलविपाक से युक्त पापकर्म लगते हैं ? [11 उ.] हाँ (कालोदायिन् ! ) लगते हैं। (अर्थात्-अरूपी जीवास्तिकाय में ही जीव पापफलकर्म से संयुक्त होते हैं / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org