________________ 190 | व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र "fe.] तए णं से पुरिसे वरुणेणं णागणतुएणं एवं वृत्ते समाणे प्रासुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणु परामुसति, परामुसित्ता उसु परामसति, उसुपरामुसित्ता ठाणं ठाति. ठाणं ठिच्चा पायतकण्णायतं उसुकरेति, प्रायतकण्णायतं उसु करेता वरुणं णागणत्तयं गाढप्पहारीकरेति / [20-9] तदनन्तर वरुण नागनत्तुमा के द्वारा ऐसा कहने पर उस पुरुष ने शीघ्र ही क्रोध से लालपीला हो कर यावत् दांत पीसते हुए (मिसमिसाते हुए) अपना धनुष उठाया। फिर बाण उठाया। फिर धनुष पर यथास्थान बाण चढाया। फिर अमुक ग्रासन से अमक स्थान पर स्थित होकर धनुष को कान तक खींचा / ऐसा करके उसने वरुण नागनत्तुमा पर गाढ़ प्रहार किया। "[10] तए णं से वरुणे णागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढपहारीकए समाणे प्रासुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणु परामसति, धणु परामुसित्ता उसुपरामुसति, उसु परामुसित्ता प्रायतकण्णायतं उसुकरेति, प्रायतकण्णायतं उसुकरेत्ता तं पुरिसं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियातो ववरोवेति / [20-10] इसके पश्चात् उस पुरुष द्वारा किये गए गाढ़ प्रहार से घायल हुए वरुण नागनत्तुआ ने शीघ्र कुपित होकर यावत् मिसमिसाते हुए धनुष उठाया। फिर उस पर बाण चढ़ाया और उस बाण को कान तक खींचा। ऐसा करके उस पुरुष पर छोड़ा। जैसे एक ही जोरदार चोट से पत्थर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं, उसी प्रकार वरुण नागनतृक ने एक ही गाढ़ प्रहार से उस पुरुष को जीवन से रहित कर दिया / "[11] तए णं से वरुणे नागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकते समाणे प्रत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट्ट तुरए निगिण्हति, तुरए निगिहित्ता रहं परावत्तेइ, 2 ता रहमुसलातो संगामातो पडिनिक्खमति, रहमुसलामो संगामातो पडिमिक्खमेत्ता एगंतमंतं प्रवक्कमति, एगंतमंतं प्रवक्कमित्ता तुरए निगिण्हति, निगिहित्ता रहं ठवेति, 2 ता रहातो पच्चोरुहति, रहातो पच्चोरहित्ता रहाम्रो तुरए मोएति, 2 तुरए विसज्जेति, विसज्जित्ता दम्भसंथारगं संथरेति, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहति, दम्भसं० दुरुहिता पुरस्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयल जाय कटु एवं बयासो-नमोऽत्थु णं अरहताणं जाव संपत्ताणं / नमोऽत्थ णं समणस्स भगवनो महावीरस्स प्राइगरस्स जाव संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स / वदामि गं भगवतं तस्थगतं इहगते, पासउ मे से भगवं तत्थगते; जाव वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासीपुवि पिणं मए समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतियं थूलए पाणातिवाते पच्चक्खाए जावज्जीवाए एवं जाव थूलए परिमाहे पच्चक्खाते जावज्जीवाए, इयाणि पि णं अहं तस्सेव भगवतो महावीरस्स अंतियं सव्वं पाणातिवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, एवं जहा खंदनी (स० 2 उ०१ सु० 50) जाव एतं पि णं चरिमेहि उस्साह-णिस्सासेहिं 'वोसिरिस्सामि' ति कट्ट सन्नाहपट्ट मुयति, सन्नाहपट्ट मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेति, सल्लुद्धरणं करेत्ता पालोइयपडिक्कते समाहिपत्ते प्राणुपुवीए कालगते / [20-11] तत्पश्चात् उस पुरुष के गाढ़ प्रहार से सख्त घायल हुमा वरुण नागनतृक अशक्त, अबल, अवीर्य, पुरुषार्थ एवं पराक्रम से रहित हो गया। अत: 'अब मेरा शरीर टिक नहीं सकेगा ऐसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org