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________________ अदमो उद्देसओ : 'छउमत्थ' अष्टम उद्देशक : 'छद्मस्थ संयमादि से छमस्थ के सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का निषेध 1. छउमस्थे णं मते ! मणूसे तीयमणतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं० ? एवं जहा पढमसते चउत्थे उद्देसए (सू० 12-18) तहा भाणियध्वं जाव अलमत्थु / 1 प्र.भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य, अनन्त और शाश्वत अतीतकाल में केवल संयम द्वारा, केवल संवर द्वारा, केवल ब्रह्मचर्य से, तथा केवल अष्टप्रवचनमाताओं के पालन से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत् उसने सर्व दुःखों का अन्त किया है ? [1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / इस विषय में प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक (सू. 12-18) में जिस प्रकार कहा है, उसी प्रकार यहाँ यावत् 'अलमत्थु पाठ तक कहना चाहिए। विवेचन--संयमादि से छद्मस्य के सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का निषेध-प्रस्तुत प्रथम सूत्र में भगवतीसूत्र के प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में उक्त पाठ के अतिदेशपूर्वक निषेध किया गया है कि केवल संयम आदि से अतीत में कोई छद्मस्थ सिद्ध, बुद्ध, मुक्त नहीं हुअा, अपितु केवली होकर ही सिद्ध होते हैं, यह निरूपण है / फलितार्थ-प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशकोक्त पाठ का फलितार्थ यह है कि भूत, वर्तमान और भविष्य में जितने जीव सिद्ध, बुद्ध मुक्त हुए हैं, होते हैं, होंगे, वे सभी उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहन्त, जिन, केवली होकर ही हुए हैं, होते हैं, होंगे। उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारक अरिहन्त, जिन केवली को ही अलमत्थु (पूर्ण) कहना चाहिये।' हाथी और कुथुए के समानजीवत्व की प्ररूपरणा 2. से पूर्ण भंते ! हत्यिस्स य कुथुस्स य समे चेव जीवे ? हता, गोयमा ! हस्थिस्स य कुथुस्स य एवं जहा रायपसेणहज्जे जाव खुड्डियं वा, महालियं वा, से तेण?णं गोयमा ! जाव समे चेव जोवे / [2 प्र. भगवन् ! क्या वास्तव में, हाथी और कुन्थुए का जीव समान है ? [2 उ.] हाँ गौतम ! हाथी और कुन्थुए का जीव समान है / इस विषय में रायपसेणीय (राजप्रश्नीय) सूत्र में कहे अनुसार यावत् 'खुड्डियं वा महालियं वा' इस पाठ तक कहना चाहिए। हे गौतम ! इसी कारण से हाथी और कुथुए का जीव समान है। 1. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भाग 3, पृ. 1183 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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