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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र हंता, गोयमा ! अस्थि / [25 प्र.] भगवन् ! क्या ऐसा होता है कि समर्थ होते हुए भी जीव, अकामनिकरण (अज्ञानपूर्वक-अनिच्छापूर्वक) वेदना को वेदते हैं ? [25 उ.] हाँ, गौतम ! वेदते हैं। 26. कहं गं भते ! पभू वि प्रकामनिकरणं वेदणं वेदेति ? गोतमा ! जे णं णो पभू विणा पदीवेणं अंधकारंसि रूवाई पासित्तए, जे गं नो पभू पुरतो रूबाई अणिज्झाइत्ता णं पासित्तए, जे णं नो पमू मग्गतो रुवाइं प्रणवयक्खित्ता णं पासित्तए, जे शं नो पभू पासतो रूवाई अणवलोएत्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू उड्ढं रूवाई प्रणालोएत्ता गं पासित्तए, जे गं नो पभू अहे रूवाई अणालोएत्ता णं पासित्तए, एस गं गोतमा ! पभू वि अकामनिकरणं वेदणं वेदेति / [26 प्र.] भगवन् ! समर्थ होते हुए भी जीव, अकामनिकरण वेदना को कैसे वेदते हैं ? / 26 उ.] गौतम ! जो जीव समर्थ होते हुए भी अन्धकार में दीपक के बिना रूपों (पदार्थों) को देखने में समर्थ नहीं होते, जो अवलोकन किये बिना सम्मुख रहे हुए रूपों (पदार्थों) को देख नहीं ण किये बिना पोछे (पीठ के पीछे) के भाग को नहीं देख सकते, अवलोकन किये बिना अगल-बगल के (पार्श्वभाग के दोनों ओर के) रूपों को नहीं देख सकते, पालोकन किये बिना ऊपर के रूपों को नहीं देख सकते और न पालोकन किये बिना नीचे के रूपों को देख सकते हैं, इसी प्रकार हे गौतम ! ये जीव समर्थ होते हुए भी अकामनिकरण वेदना वेदते हैं। 27. अस्थि णं भते ! पभू वि पकामनिकरणं वेदणं वेदेति / हंता, अत्यि। [२७.प्र.] भगवन् ! क्या ऐसा भी होता है कि समर्थ होते हुए भी जीव, प्रकामनिकरण, (तीन इच्छापूर्वक) वेदना को वेदते हैं ? [27 उ.] हाँ, गौतम ! वेदते हैं। 28. कहं णं माते ! पभू वि पकामनिकरणं' वेदणं वेदेति ? गोयमा ! जे णं नो पमू समुहस्स पारं गमित्तए, जे णं नो पमू समुहस्स पारगताई रूवाई पासित्तए, जे णं नो पभू देवलोगं गमित्तए, जे शं नो पभू देवलोगगताई रूवाई पासित्तए एस णं गोयमा ! पभू वि पकामनिकरणं वेदणं वेति / सेवं भते ! सेवं भते ! ति। // सत्तमसए : सत्तमो उद्दसश्रो समत्तो॥ 1. पकामनिकरणं-प्रकाम-अभीष्ट अर्थ की प्राप्ति न होने से प्रकृष्ट अभिलाषा ही जिसमें निकरण-कारण है, वह प्रकामनिकरण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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