________________ 168] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [17-1] इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीव भी भोगी हैं, किन्तु विशेषता यह है कि वे जिह्वन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं। [2] तेइंदिया वि एवं चेव / नवरं घाणिदिय-जिभिदिय-फासिदियाई पड्डुच्च / [17-2] त्रीन्द्रिय जीव भी इसी प्रकार भोगी हैं, किन्तु विशेषता यह है कि वे घ्राणेन्द्रिय, जिह्वन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा से भोगी हैं। [3] चरिदियाणं पुच्छा। गोयमा ! चरिदिया कामी वि भोगी वि। {17-3 प्र.! भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में प्रश्न है कि वे कामी हैं अथवा भोगी हैं ! [17-3 उ.] गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। [4] से केण?णं जाव भोगी वि? गोयमा! चक्विदियं पडुच्च कामी, घाणिदिय-जिभिदिय-कासिदियाई पडुच्च भोगी / से तेणढणं जाव भोगी वि। [17-4 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं ? [17-4 उ.] गौतम ! (चतुरिन्द्रिय जीव) चक्षुरिन्द्रिय की अपेक्षा से कामी हैं और घ्राणेन्द्रिय, जिह्वन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा से भोगी हैं। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं / 18. अवसेसा जहा जीवा जाव वेमाणिया। [18] शेष वैमानिक-पर्यन्त सभी जीवों के विषय में औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए कि वे कामी भी हैं, भोगी भी हैं।। 19. एतेसि णं भंते ! जीवाणं कामभोगीणं नोकामीणं, नोभोगीणं, भोगीण य कतरे कतरेहितो जाव बिसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा कामभोगी, नोकामी नोभोगी अणंतगुणा, भोगी प्रणतगुणा / [16 प्र.] भगवन् ! काम-भोगी, नोकामी नोभोगी और भोगी, इन जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? [19 उ.] गीतम ! कामभोगी जोव सबसे थोड़े हैं, नोकामी-नोभोगी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं और भोगी जीव उनसे अनन्तगणे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org