________________ सप्तम शतक : उद्देशक-६] [163 विमुख होंगे। मत्स्य आदि को जमीन में गाड़ कर, फिर उन्हें सूर्य के ताप और चन्द्रमा की शीतलता से सिकने देना ही उनकी आहार पकाने की पद्धति होगी / इस प्रकार की पद्धति से 21 हजार वर्ष तक जीवनयापन करने के पश्चात् वे मानव अथवा वे पशु-पक्षी आदि मर कर नरक या तियंञ्चगति में उत्पन्न होंगे। ___ कठिन शब्दों के विशेषार्थ-अक्खसोतप्पमाणमेतं- रथ की धुरी टिकने के छिद्र जितने प्रमाणभर / वोज्झिहिति= बहेंगे / निद्धाहिति = निकलेंगे। णिम्मेरा- कुलादि की मर्यादा से हीन, नंगधडंग रहने वाले / // सप्तम शतक : छठा उद्देशक समाप्त / / 1. वियाहपण्णत्तिसुत्त (भूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 295-296 2. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 309 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org