________________ 160 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कालेकलटे, अत्यन्त कठोर श्यामवर्ण के बिखरे हुए बालों वाले, पीले और सफेद केशों वाले, बहुत-सी नसों (स्नायुओं) से शरीर बंधा हुआ होने से दुर्दर्शनीय रूप वाले, संकुचित (सिकुड़े हुए) और वलीतरंगों (झुरियों) से परिबेष्टित, टेढ़ेमेढ़े अंगोपांग वाले, इसलिए जरापरिणत वद्धपुरुषों के समान प्रविरल (थोड़े-से) टूटे और सड़े हुए दांतों वाले, उद्भट घट के समान भयंकर मुख वाले, विषम नेत्रों वाले, टेढ़ी नाक वाले तथा टेढ़े मेढ़े एवं झुर्रियों से विकृत हुए भयंकर मुख वाले, एक प्रकार की भयंकर खुजली (पांव=पामा) बाले, कठोर एवं तीक्ष्ण नखों से खुजलाने के कारण विकृत बने हुए; दाद, एक प्रकार के कोढ़ (किडिभ), सिध्म (एक प्रकार के भयंकर कोढ वाले, फटी हुई कठोर चमड़ी वाले, विचित्र अंग वाले, ऊंट आदि-सी गति (चाल) वाले, (बुरी आकृति वाले), शरीर के जोड़ों के विषम बंधन वाले, ऊँची-नीची विषम हड्डियों एवं पसलियों से युक्त, कुगठनयुक्त, कुसंहनन वाले, कुप्रमाणयुक्त विषम संस्थानयुक्त, कुरूप, कुस्थान में बढ़े हुए शरीर वाले, कुशय्या वाले (खराब स्थान में शयन करने वाले), कुभोजन करने वाले, विविध व्याधियों से पीड़ित, स्खलित (लड़खड़ाती चाल) वाले, उत्साहरहित, सत्त्वरहित, विकृत चेष्टा वाले, तेजोहीन, बारबार शीत, उष्ण, तीक्ष्ण और कठोर वात से व्याप्त (संत्रस्त), रज आदि से मलिन अंग वाले अत्यन्त क्रोध, मान, माया और लोभ से युक्त, अशुभ दु:ख के भागी, प्रायः धर्मसंज्ञा और सम्यक्त्व से परिभ्रष्ट, होंगे / उनको अवगाहना उत्कृष्ट एक रत्निप्रमाण (एक मुड हाथ भर) होगी। उनका आयुष्य (प्रायः) सोलह वर्ष का और अधिक-से-अधिक बीस वर्ष का (परमायुष्य) होगा / वे बहुत से पुत्रपौत्रादि परिवार वाले होंगे और उन पर उनका अत्यन्त स्नेह (ममत्व या मोहयुक्त प्रणय) होगा / इनके 72 कुटुम्ब (निगोद) बीजभूत (आगामी मनुष्यजाति के लिए बीजरूप) तथा बीजमात्र होंगे। ये गंगा और सिन्धु महानदियों के बिलों में और वैताढ्य पर्वत की गुफाओं का प्राश्रय लेकर निवास करेंगे। विवेचन-दुःषमदुःषमकाल में भारतवर्ष, भारत-भूमि एवं भारत के मनुष्यों के आचार (प्राकार) और भाव का स्वरूप-निरूपण प्रस्तुत सूत्र में विस्तार से अवसर्पिणी के छठे आरे के दुःषमदुः षमकाल में भारतवर्ष के, भारत-भूमि की, एवं भारत के मनुष्यों के आचार-विचार एवं आकार तथा भावों के स्वरूप का निरूपण किया गया है। निष्कर्ष-छठे बारे में भरतक्षेत्र की स्थिति अत्यन्त संकटापन्न, भयंकर, हृदय-विदारक, अनेक रोगोत्पादक, अत्यन्त शीत, ताप, वर्षा आदि से दुःसह्य एवं वनस्पतिरहित नीरस सूखी-रूखी भूमि पर निवास के कारण असह्य होगी। भारतभूमि अत्यन्त गर्म, धूलभरी, कीचड़ से लथपथ एवं जीवों के चलने में दुःसह होगी। भारत के मनुष्यों की स्थिति तो अत्यन्त दुःखद, असह्य, कषाय से रंजित होगी। विषम-बेडौल अंगों से युक्त होगी।' कठिन शब्दों के विशेष अर्थ-उत्तमकट्टपत्ताए उत्कट अवस्था-पराकाष्ठा या परमकष्ट को प्राप्त / दुन्विसहा = दुःसह, कठिनाई से सहन करने योग्य / वाउल = व्याकुल / वाया-संवट्टगा य वाहितिसंवर्तक हवाएँ चलेंगी। धूमाहिति =धूल उड़ती होने से / रेणुकलुसतमपडलनिरालोगा - रज से मलिन होने से अन्धकार के पटल जैसी, नहीं दिखाई देने वाली। चंडानिलपहयतिक्खधारानिवायपउरं वासं वासिहिति = प्रचण्ड हवाओं से टकराकर अत्यन्त तीक्ष्ण धारा के साथ गिराने से प्रचुर 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भाग-१, पृ. 293-294 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org