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________________ 152] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [5 उ.] गौतम ! वह (नरक में उत्पन्न होने योग्य जीव) इस भव में रहता हुआ नरकायुष्य का वेदन नहीं करता, किन्तु वहाँ उत्पन्न होता हुआ वह नरकायुष्य का वेदन करता है, और उत्पन्न होने के पश्चात् भी नरकायुष्य का वेदन करता है। 6. एवं जाव वेमाणिए। [6] इस प्रकार यावत् वैमानिक तक चौवीस दण्डकों में (आयुष्यवेदन का) कथन करना चाहिए / विवेचन-चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के आयुष्यबन्ध . और आयुष्यवेदन के सम्बन्ध में प्ररूपणा-नैरयिक से लेकर वैमानिक तक के जीवों में से जो जीव जिस गति में उत्पन्न होने वाला है, वह यहाँ रहा हुआ ही उस भव का आयुष्यवेदन कर लेता है, या वहाँ उत्पन्न होता हुया करता है, अथवा वहाँ उत्पन्न होने के बाद अायुष्यबन्ध या आयुष्यवेदन करता है ? इस विषय में सैद्धान्तिक समाधान प्रस्तुत किया गया है। चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के महावेदना-अल्पवेदना के सम्बन्ध में प्ररूपरणा 7. जीवे णं भते ! जे भविए नेरतिएसु उवज्जित्तए से णं मते ! कि इहगते नहावेदणे ? उववज्जमाणे महावेदणे ? उववन्ने महावेदणे ? / ___ गोयमा ! इहगले सिय महावेयणे, सिय अपवेदणे; उववज्जमाणे सिय महावेधणे, सिय अप्पवेदणे ; अहे णं उववन्ने भवति ततो पच्छा एगंतदुक्खं वेदणं वेदेति, प्राहच्च सातं / [7 प्र.] भगवन् ! जो जीव नारकों में उत्पन्न होने वाला है, भगवन् ! क्या वह यहाँ (इस भव में) रहता हुआ ही महावेदना वाला हो जाता है, या नरक में उत्पन्न होता हुआ महावेदना वाला होता है, अथवा नरक में उत्पन्न होने के पश्चात् महावेदना वाला होता है ? [7 उ.] गौतम ! वह (नरक में उत्पन्न होने वाला जीव) इस भव में रहा हुआ कदाचित् महावेदना वाला होता है, कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है। नरक में उत्पन्न होता हुआ भी कदाचित् महावेदना वाला और कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है; किन्तु जब नरक में उत्पन्न हो जाता है, तब वह एकान्तदुःखरूप वेदना वेदता है, कदाचित् सुख (साता) रूप (वेदना वेदता है।) 8. [1] जीवे णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उवज्जित्तए पुच्छा। गोयमा! इहगते सिय महावेदणे, सिय अप्पवेदणे; उववज्जमाणे सिय महावेदणे, सिय अप्पवेदणे; अहे णं उववन्ने भवति ततो पच्छा एगतसातं वेदणं वेदेति, प्राहच्च असातं / [8-1 प्र.) भगवन् ! जो जीव असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाला है, (उसके सम्बन्ध में भी) यही प्रश्न है / [8-1 उ.] गौतम ! (जो जीव असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाला है,) वह यहाँ (इस भव में) रहा हुमा कदाचित् महावेदना वाला और कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है; वहाँ उत्पन्न होता हुमा भी वह कदाचित् महावेदना वाला और कदाचित् अल्पवेदना वाला होता है, किन्तु जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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