________________ 146] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की शाश्वतता-प्रशाश्वतता का निरूपण 23. [1] रतिया मते ! कि सासया, असासया ? गोयमा ! सिय सासया, सिय प्रसासया / 23-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव शाश्वत हैं या प्रशाश्वत हैं ? [23-1 उ.] गौतम ! नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं। [2] से केण?ण भते ! एवं बुच्चइ 'नेतिया सिय सासया, सिय प्रसासया' ? गोयमा! अब्बोच्छितिनयट्ठताए सासया, वोच्छित्तिणयट्ठयाए प्रसासया। से तेण?णं जाव सिय प्रसासया। [23-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं ?' _ [23-2 उ.] गौतम ! अव्युच्छित्ति (द्रव्याथिक) नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव शाश्वत हैं और व्युच्छित्ति (पर्यायाथिक) तय की अपेक्षा से नैरयिक जीव अशाश्वत हैं। इस कारण से, हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं / 24. एवं जाव वेमाणियाणं जाव सिय प्रसासया। सेवं मते ! सेवं भत! ति। // सत्तम सए : तइनो उद्देसमो समत्तो / / [24] इसी प्रकार यावत् वैमानिकदेव-पर्यन्त कहना चाहिये कि वे कथञ्चित् शाश्वत हैं और कञ्चित् प्रशाश्वत् हैं। यावत् इसी कारण से मैं कहता हूँ कि वैमानिक देव कञ्चित् शाश्वत हैं, कथञ्चित् अशाश्वत हैं।' भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् / यह इसी प्रकार है, इस प्रकार कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन--चौबीस दण्डकवर्ती जीवों की शाश्वतता-प्रशाश्वतता का निरूपण-प्रस्तुत दो सूत्रों (23 और 24) में चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की शाश्वतता और प्रशाश्वतता का सापेक्षिक कथन किया गया है। अव्युच्छित्तिनधार्थता ब्युच्छित्तिमयार्थता का अर्थ-प्रव्युच्छित्ति (ध्र बता) प्रधान नय अव्युच्छित्ति नय है, उसका अर्थ है-द्रव्य, अर्थात्-द्रव्याथिक नय की अपेक्षा और व्युच्छित्ति प्रधान जो नय है, उसका अर्थ है-पर्याय, अर्थात-पर्यायाथिक नय की अपेक्षा / द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा सभी पदार्थ शाश्वत हैं और पर्यायाथिक नय की अपेक्षा सभी पदार्थ अशाश्वत हैं।' // सप्तम शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त / / 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 302 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org