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________________ बीओ उद्देसओ : 'विरति' द्वितीय उद्देशक : विरति सुप्रत्याख्यानी और दुष्प्रत्याख्यानी का स्वरूप 1. [1] से नूणं भंते ! सध्यपाहिं सव्वमूतेहि सव्वजोवेहि सव्वसहि ‘पच्चक्खाय' इति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवति ? दुपच्चक्खायं भवति ? गोतमा ! सव्वपाहिं जाव सव्वसहि 'पच्चक्खाय' इति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खातं भवति, सिय दुपच्चक्खातं भवति / [1-1 प्र.] हे भगवन् ! 'मैंने सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव, और सभी सत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है', इस प्रकार कहने वाले के सुप्रत्याख्यान होता है या दुष्प्रत्याख्यान होता है ? [1-1 उ.] गौतम ! 'मैंने सभी प्राण यावत् सभी सत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है, इस प्रकार कहने वाले के कदाचित् सुप्रत्याख्यान होता है और कदाचित् दुष्प्रत्याख्यान होता है / [2] से केण? णं भंते ! एवं बुच्चा 'सम्बयाणेहि जाव सिय दुपच्चक्खातं भवति ?' गोतमा! जस्स णं सम्वयाणेहि जाव सम्वसत्तेहि 'पच्चक्खाय' इति वदमाणस्स गो एवं अभिसमन्त्रागतं भवति 'इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा' तस्स गं सव्वपाहि जाव सध्वसत्तेहि पच्चक्खायं इति वदमाणस्स नो सुपच्चक्खायं भवति, दुपच्चक्खायं भवति / एवं खलु से दुपच्चक्खाई सम्वपाहि जाव सव्वसत्तेहि पच्चक्खाय' इति वदमाणो नो सच्चं भासं भासति, मोसं भासं भासइ, एवं खलु से मुसायाती सवाहि जाव सव्वसहि तिविहं तिबिहेणं अस्संजयविरयपडिहयपच्चयखायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगतदंडे एगंतबाले यावि भवति / जस्स णं सवपाहि जाव सव्वसत्तेहि पच्चक्खाय' इति वदमाणस्स एवं अभिसमन्नागतं भवति 'इमे जोवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा' तस्स णं सन्वपाहि जाव सम्वसत्तेहि पच्चक्खाये इति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवति, नो दुपच्चक्खायं भवति / एवं खलु से सुपच्चक्खाई सम्वपाहि जाव सव्यसत्तेहि पच्चकवायं इति वयमाणे सच्चं भासं भासति, नो मोसं मासं भासति, एवं खलु से सच्चवादी सव्वपाणेहि जाव सव्वसत्तेहिं तिविहं तिविहेणं संजविरयपडिहयपच्चखायपावकम्मे अकिरिए संवुडे [एगंतप्रदंडे] एगंतपंडिते यावि भवति / से तेण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ जाव सिय दुपच्चक्खायं भवति / [1-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि सभी प्राण यावत् सभी सत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान-उच्चारण करने वाले के कदाचित् सुप्रत्याख्यान और कदाचित् दुष्प्रत्याख्यान होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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