________________ 120 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र करते हैं, तो हे गौतम ! यह धूम-दोष से दूषित आहार-पानी कहलाता है। जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी प्रासुक यावत् आहार ग्रहण करके गुण (स्वाद) उत्पन्न करने हेतु दूसरे पदार्थों के साथ संयोग करके आहार-पानी करते हैं, हे गौतम ! वह आहारपानी संयोजनादोष से दूषित कहलाता है / हे गौतम ! यह अंगारदोष, धूमदोष और संयोजनादोष से दूषित पानभोजन का अर्थ कहा गया है। 18. अह भंते ! वीतिगालस्स वीयधुमस्स संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाण-भोयणस्स के अट्ठ पण्णते? . गोयमा ! जे णं णिग्गंथे वा 2 जान पडिगाहेत्ता अमुच्छिते जाव प्राहारेति एस णं गोपमा ! वोतिगाले पाण-भोयणे / जे णं निग्गंथे वा 2 जाव पडिगाहेत्ता णो महताअप्पत्तियं जाव आहारेति, एस णं गोयमा ! वीतधमे पाण-भोयणे / जे णं निग्गंथे वा 2 जाव पडिगाहेता जहा लद्धतहा प्राहारं आहारेति एस णं गोतमा ! संजोयणादोसविप्पमुक्के पाण-भोयणे / एस णं गोतमा! वीतिगालस्स वीतधूमस्स संजोयणादोस विष्पमुक्कस्स पाण-भोयणस्स अट्ठ पण्णत्ते / [18 उ.] भगवन् ! अंगारदोष, धूमदोष और संयोजनादोष, इन तीन दोषों से मुक्त (रहित) पानभोजन का क्या अर्थ कहा गया है ? | [18 उ.] गौतम ! जो निम्रन्थ या निर्गन्धी प्रासुक और एषणीय अशन-पान-खादिम. स्वादिमरूप चतुर्विध आहार को ग्रहण करके मूर्छारहित यावत् आसक्तिरहित होकर पाहार करते हैं, हे गौतम ! यह अंगारदोषरहित पान-भोजन कहलाता है। जो निर्ग्रन्थ या निनन्थी यावत् अशनादि को ग्रहण करके अत्यन्त अप्रीतिपूर्वक यावत् आहार नहीं करता है, हे गौतम ! यह धम दोषरहित पानभोजन है। जो निर्ग्रन्थ या निग्रंथो यावत् अशनादि को ग्रहण करके, जैसा मिला है, वैसा ही आहार कर लेते हैं, (स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें दूसरे पदार्थों का संयोग नहीं करते,) तो हे गौतम ! यह संयोजनादोषरहित पान-भोजन कहलाता है। हे गौतम ! यह अंगारदोषरहित, धूमदोषरहित एवं संयोजनादोषविमुक्त पान-भोजन का अर्थ कहा गया है। ते! खेत्तातिकंतस्स कालातिमकंतस्स मम्गातिक्तस्स पमाणातिक्तस्स पाणभोयणस्स के अट्ट पणते ? गोयमा ! जे गं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासुएसणिज्जं असण-पाण-खाइम-साइमं अणुगते सूरिए पडिग्गाहिता उगते सूरिए आहारं पाहारेति एस णं गोतमा ! खेत्तातिपकते पाण भोयणे / जे णं निग्गंथे बा 2 जाव० साइमं पढमाए पोरिसीए पडिगाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवायणावेत्ता आहार ग्राहारेति एस णं गोयमा ! कालातिक्कते पाण-भोयणे / जे णं निम्गंथे वा 2 जाव० सातिमं पडिगाहित्ता परं अद्धजोयणमेराए वीतिक्कमावेत्ता प्राहारमाहारेति एस णं गोयमा! मग्गातिक्कते पाण-भोयणे / जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासुएसणिज्जं जाव सातिम पडिगाहित्ता परं बत्तीसाए कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ताणं कवलाणं पाहारमाहारेति एस णं गोतमा! पमाणातिक्कते पाण-भोयणे / अटकुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे अप्पाहारे, दुवालसकुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले प्राहारमाहारेमाणे प्रवड्डोमोयरिया, सोलसकुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले पाहारमाहारेमाणे दुभागष्पत्ते, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org